इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
नाम: अनिल पु. कवीन्द्र
जन्म स्थान: इलाहाबाद, उ. प्र.
शिक्षा: बी. ए. (यूइंग क्रिश्चियन कॉलेज, इलाहाबाद), एम. ए., एम. फिल., पी-एच. डी. (जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली)
अनुभव: म्यूज़ ऑफ़ मर्मर (काव्य एवं कला विशेषांक - 2008, अन्तर्राष्ट्रीय संस्करण) में सहायक सम्पादक, इण्डियन स्पोर्ट्स एण्ड कल्चरल सोसाइटी में सलाहकार
संप्रति: अरगला में मुख्य सम्पादक
कवितायें: सरिता, कादम्बिनी, उन्नयन, गुड़िया, प्रस्ताव, तरुण घोष, हेरिटेज़, मुक्ता, महकता आंचल, नवनीत एवं सरस सलिल इत्यादि में कवितायें प्रकाशित
कविता संग्रह: दीवार, ख़िलाफ़ हूँ मैं, पीली घास (प्रकाशनाधीन)
कहानियाँ: तरुण घोष इत्यादि में कहानियाँ तथा हंस, सरिता, राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), गुड़िया एवं तमाम साहित्यिक - ग़ैर साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में पत्र प्रकाशित
उपन्यास: अरगला (प्रकाशनाधीन)
हिन्दी अनुवाद: चीतों की फ़सलेगर्मा (केकी एन. दारूवाला की 'ए समर ऑफ़ टाईगर्स'), डबलिन वाले (जेम्स ज्वायस की 'डब्लिनर्स'); प्रकाशनाधीन.
अभिरूचियाँ: काव्य लेखन, कथा साहित्य, तैल चित्र, रेखाचित्र एवं साहित्यिक अध्ययन
सांस्कृतिक एवं कलात्मक गतिविधियाँ: कदम फ़िल्म्स द्वारा निर्मित "काले लोगे का रंग लाल है" में पार्श्व आवाज़; इलाहाबाद नाट्य संघ द्वारा आयोजित नाट्य परिचर्चा में "नींव का पहला पत्थर" नाटक में स्क्रिप्ट लेखन एवं अभिनय; गुड़िया, बचपन बचाओ आंदोलन जैसी कई समाजसेवी संस्थाओं में कार्यकर्ता के रूप में कई वर्षों तक कार्य; कई चित्रकला प्रदर्शिनियों में 100 से भी अधिक कला कऊतियाँ प्रदर्शित
यात्राएँ: भारत के अधिकांश शहर और इस साल आयरलैण्ड जाने की तैयारी
संपर्क: 210, झेलम, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, 110067
वेब साईट: http://www.argalaa.org