अर्गला

इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका

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पंकज सिंह

Pankaj Singh

नाम: पंकज सिंह

उम्र: 75 वर्ष

जन्म स्थान: पैतृक गाँव चैता (पूर्वी चम्पारण), मुजफ्फ़रपुर (बिहार)

शिक्षा: बी. ए. ऑनर्स और एम. ए. (बिहार विश्वविद्यालय)
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में वियतनाम के संघर्ष पर शोध.

अनुभव: - कई वर्षों तक जनसत्ता में नियमित कला - समीक्षा.
- नवभारत टाइम्स में एक वर्ष तक साप्ताहिक स्तंभ 'विमर्श' उल्लेखनीय.
- फ्रेंच एन्साइक्लोपीडीया 'लारूस' में हिंदी साहित्य पर टिप्पणी.
- अनेक पाण्डुलिपियों का संपादन.
- ऑस्फोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, एन. सी. ई. आर. टी. और साहित्य अकादमी आदि के लिए अनुवाद.
- डाक्यूमेन्टरी और कथा फ़िल्मों के लिए पटकथा लेखन.
- डाक्यूमेन्टरी फ़िल्मों का निर्माण और निर्देशन .
- रेडियो और टेलीविज़न के प्रसारक और प्रस्तोता के रूप में बहुख्यात.
- संपादक की हैसियत से दूरदर्शन समाचार, ब्रिटिश उच्चायोग और कई पत्र - पत्रिकाओं से संबद्ध रहे.
- पेरिस के पौवार्त्य भाषा और सभ्यता संस्थान तथा सीपा प्रेस इंटरनेशनल के भारतीय विभागों में काम किया.
- बी. बी. सी. लंदन की विश्व सेवा में साढ़े चार वर्ष तक प्रोड्यूसर.
- यात्राओं औ प्रवास के दौरान विश्वविद्यालयों और संस्थानिक आयोजनों में व्याख्यान और काव्यपाठ
- पेरिस के अंतर्राष्टीय कैता उत्सव में भारत का प्रतिनिधित्व.
सामजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियाँ:
- क्रांतिकारी वाम राजनीति और पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय.
- रचनात्मक लेखन के अतिरिक्त राजनीति और साहित्य - कला - संस्कृति पर निबंध और समीक्षा चर्चित.
- 'जनहस्तक्षेप' नामक संगठन के संस्थापक सदस्य और उसके कार्यक्रमों में निरंतर भागीदारी.
पुरस्कार: मैथिलीशरण गुप्त सम्मान (2003), शमशेर सम्मान (2007), नई धारा सम्मान (2008)

संप्रति: लेखन के अतिरिक्त फ़िल्म और मीडिया प्रामर्श के क्षेत्र में गतिशील.

प्रकाशित रचनायें: प्रथम रचना 1966 में प्रकाशित. आहटें आसपास (1981), जैसे पवन पानी (2001), नहीं (2009). अनेक देशी विदेशी संकलनों में कविताएँ. उर्दू, बांग्ला, अँग़्रेज़ी, जापानी, रूसी तथा फ्रेंच आदि में कविताओं के अनुवाद.

यात्राएँ: पेरिस (1978 - 80), लंदन (1987- 91), फ्रांस और ब्रिटेन के अलावा बेल्ज़ियम, ज़र्मनी, हॉलैण्ड, ईराक़, पाकिस्तान, नेपाल, आदि कई एशियाई - यूरोपीय देशों की यात्राएँ.

संपर्क: दिल्ली में रहते हुए समकालीन बौद्धिक - सामाजिक - सांस्कृतिक जीवन में हस्तक्षेप.

आत्मकथ्य: कविता के संदर्भ में पंकज सिंह अक्सर मुक्तिबोध की काव्य पंक्तियों .... "नही होती खत्म कविता नही होती /वह तो आवेग -- त्वरित कालयात्री है " ... को स्मरण करते हुए कहते हैं कि उनकी कविताओं का आवेग देने वाला तत्व है भारतीय समाज के शोषित - उत्पीड़ित समुदायों के संघर्ष की चेतना के साथ उनके व्यावहारिक जीवन और रचना संसार की प्रतिबद्द सम्बद्दता. पंकज सिंह के लिए कविता अभिजनों की रूचि से अनुकूलित कला - कौशल नहीं बल्कि अपने ऐतिहासिक समय की सामूहिक चेतना का कलात्मक विस्तार है वे यह मानते हैं कि काव्य रचना उनके व्यक्तित्व का सत्व है .
पंकज सिंह ने अपने पिछले काव्य -संगर्हों, आहटें आसपास और जैसे पवन पानी, की कविताओं में सार्थक जोखिम उठाते हुए भारतीय समाज में पिछली शताब्दी के सातवें दशक की ' वसंत गर्जना ' से उत्प्रेरित प्राण - शक्ति को भाषा के अनूठे रूपाकार दिये अन्याय की सत्ताओं के बरक्स सांस्क्रतिक संरचना में प्रतिरोध के साहस की अभिव्यक्ति और परिवर्तन के महास्वप्न की अर्थ - सक्रियता उन कविताओं की उदग्र पहचान बनी उन तत्वों से हिन्दी में अनुभव - सघन तथा अभिप्राय की गरिमा से भरी जिस मौलिक राजनीतिक कविता को पंकज सिंह के कवि ने सम्भव किया, उसके नये और अधिक क्षिप्र रूप उनके नए काव्य संग्रह नहीं ई कविताओं में हैं.
इन कविताओं में अनुभव - अनुकूलित शिल्प का सुघड़पन है कहने के ऐसे अनेके लहज़े हैं जो काव्य - औज़ारों, हिकमतों और समग्र प्रविधि के मामले में हिन्दी काव्य के नये विस्तार के सूचक हैं.
पंकज सिंह की जीवन्त अनुभव - राशि में अगर अन्तविरोधों और द्दुन्द्दों में शामिल विडम्बनाएँ और कई प्रकार के सामूहिक बोध के समुच्चय हैं, तो निजी आवेग- संवेग, प्रेम और आसक्ति, आघात-संघात और अवसाद - विषाद भी हैं जो पंकज सिंह की कविताओं में व्यापक और तीव्र संवेदकों की उपस्थिति को गहराई देनेवली चीज़े हैं और इस अर्थ में चकित करनेवाली भी कि वे तर्क और विवेक की शक्लें अख़्तियार करके सार्वजनिक संलाप का हिस्सा मालूम होने लगती हैं.
अगर काव्य के कुछ शाश्वत मापक होते हों तो उनके सम्मुख भी पंकज सिंह की जीवन विश्वासी कविता सार्थक और सामाजिक - सांस्क्रतिक उपयोग की बनी रहेगी क्योंकि इसकी आत्मा में करूणा और प्रेम की सुनिशिचत लय है वह उसी महस्वप्न से आबद्द -प्रतिबद्द है जो उसे जीवन और भाषा में चतुर्दिक फैले विचलनों के बीच सन्तुलित और ऊर्जस्व बनाये हुए है.