अर्गला

इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका

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अनुसृजन


रितु एम. जेराथ

कितनी बार गत बीते दिनों में ऐसा हुआ है कि आप टेलिविजन पर प्रोग्राम ढूँढ रहे हों और सामने स्क्रीन पर महिलाओं की नाचती हुई दृष्य जिनमें कि उनके बदन पर नाममात्र के कपड़े ही होते हैं दिख जाती है? कब पिछली बार समाचार पत्र के सिटी सेक्शन के पन्नों पर महिलाओं और उनके कपड़ों जो वे पहनती हैं ओ नहीं पहनती हैं, और उनकी यौन इच्छाओं के लेख पढ़े थे? क्या तुमने वह हिन्दी फिल्म का गाना सुना है ......
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