अर्गला

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कथा साहित्य

कमल कुमार

मैकडॉनल्ड

आख़िरी शिफ़्ट थी. जब तक सब निपटा बारह बज चुके थे. वे तीनों एक टेबल पर बैठ गयी थीं. सुविधा इसी में थी कि कुछ खाकर ही घर जाएँ.

सोनू चिहुँकी थी. मओना कि हिलाया था - फिर, कल क्या हुआ? आया था वो?

आया था, पर वही गुस्से से तना खड़ा था बोला - देर से क्यों आई हो, कितनी बार कहा है तुम्हें... इन्तज़ार करना मुझे अच्छा नहीं लगता.

देर हो गई! तो क्या हुआ! तुम लौट सकते थे. क्यों किया इन्तज़ार.

उसका चेहरा लटक गया था. मैंने बहलाया था - बुरा लगा?

तो?

मैंने शुरू में ही कहा था, डोंट गेट इमोशनल विद मी. मेरी अपनी प्राब्लम्स हैं मेरा एक छोटा बच्चा है. पति नामधारी एक व्यक्ति है मेरे जीवन में

उसने मुझे दोनों हाथों से पकड़ कर अपनी तरफ़ खींचा था.

बाँहों में घेर कर चूमा था.

तुम्हें इस नरक से मुक्ति दिलाना चाहता हूँ. मेरे लिए एक नया नरक बनाना चाहते हो... मुझे हँसी आई थी. फिर नाराज़ हो गए. देखो, मैंने तुम्हें शुरू में ही कह दिया था. हम लोगों के बीच कोई रिप्लेसमेंट, कोई विस्थापन जैसा नहीं होगा.

पर मुझे तुम्हारी हालत देखकर गुस्सा आता है. क्यों सह रही हो यह सब...

वह एक बार कम्पटीशन में पास हो जाए सब ठीक हो जाएगा. तब मुझे यह नौकरी करने की ज़रूरत नहीं होगी. इस बार वह कम्पटीशन में आ ही जाएगा. फिर सब बदल जाएगा.

और अगर नहीं आया तो? क्या ज़रूरी है वो इस बार पास हो ही जाए. आख़िर उसकी बैकग्राऊंड क्या है?

उस छोटे से कस्बे में उसे एक्सपोजर क्या मिला होगा. उसने कोई अकादमी भी ज्वाइन नहीं कर रखी. इतना हार्ड कम्पटीशन है. उसके जैसे, उससे अच्छे बहुत से हैं... क्या सभी आ जाते हैं?

मुझे गुस्सा आया था, तुम मेरे घर की रामायण मत बाँछो. अपने मतलब से मतलब रखो. तुम्हारे पास आई थी कुछ अच्छा समय गुज़ारने के लिए... एक तुम हो कि. ओ के. उसने अपनी गलती मानी थी. हमने रेस्तराँ में साथ बैठकर खाना खाया था. उसने जाते हुए मुझे चूमा था. एक रात मेरे कमरे में आ जाओ. रात की ड्यूटी वाले दिन. हम सात-आठ घंटे साथ बिताएँगे. ड्यूटी ख़त्म होने के समय मैं तुम्हें छोड़ दूँगी.

उसके भीतर रेत के बगुले उठ रहे थे. बातचीत का आख़िरी हिस्सा उसने नहीं बताया था.

और वो तुम्हारा रूम पार्टनर? वो नहीं है, घर गया है. आ जाओ कब आओगी, वह बेचैन था.

भारबरि बेरी तले जैसे कोई छाँह ढूँढता हो. वह भी उसके पास आ गई थी. वह पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था. उन्होंने सात-आठ घंटे साथ गुज़ारे थे. जाने लगी तो उसने भरपूर चुंबन लिया था, वी हैद लॉट्स ऑफ़ फ़न! फिर कब आओगी.

उसने रोका था, अभी की सोचो और जल्दी से घर के मोड़ तक छोड़ो मुझे.

लेकिन इस तरह नहीं आ-जा सकती थी. पर वह मानता ही नहीं. अब उसका इमोशनल ब्लैकमेल करने लगा था.

मोना ने उसे सोचते देख आख़िरी टुकड़ा पकड़ा था रेस्तराँ के बाद कहाँ गये थे. क्या हुआ था? कुछ नहीं उसने बाहर आकर अँधेरे में एक हग ली थी और चूमा था.

पर तुम तो परेशान लग रही हो. क्या हुआ क्या है?

कुछ नहीं, पर वह बहुत ज़िद करने लगा. मुझ पर रोब मारता है. जिद करता है कि मैं उसके पास आऊँ. हर रोज़.

फिर क्या करोगी तुम. फँस गई न चक्कर में

वह सीधी बैठ गई थी. अब की उसको सीधे और साफ़ शब्दों में कहूँगी - तुम सैलड हो यानी सैलड बस मेन कोर्स के साथ लिया तो लिया, नहीं तो ज़रूरी नहीं.

वे तीनों ठहाका मारकर हँसी थीं गुड वन! मेन कोर्स वह तेरा पति और यह सैलड. वेरी इन्नोवेटिव. पर सैलड ही क्यों, वह डेसर्ट भी तो हो सकता है?

नहि. डेसर्ट मुझे पसंद नहीं

सोनू, तेरा क्या हाल है? कैसा चल रहा है? अनु ने पूछा था.

कुछ नहीं सब ख़त्म.

क्या हुआ? अनु उसके पास खिसक आई थी.

यूँ तो सब ठीक था. उसका मुँह बंद रहता तो सब ठीक ही लगता था. पर जैसे ही वह अपना मुँह खोलता उसका एक मेटल का दाँत दिखता था. मैंने पूछा था - यह मेटल का दाँत क्यों लगवाया?

मोटर बाइक से एक एक्सीडेंट हो गया था. दाँत टूट गया था. पर यह सवाल क्यों पूँछा?

यूँ ही मन में आया था. कुछ देर चुप रहकर मैंने अपनी बात पूरी की थी - मुझे यह अच्छा नहीं लगता.

क्यों? तुम्हें इससे क्या फ़र्क पड़ता है? वह नाराज़ हुआ था.

पड़ता है फ़र्क. मुझे इससे फ़र्क पड़ता है. जब तुम मुझे चूमते हो तो बंद आँखों के सामने भी तुम्हारा यह दाँत दिखाई देता है.

नॉनसेंस

क्यों नॉनसेंस क्यों? मेरे लिए इतना नहीं कर सकते. इसे निकलवाकर पोर्सलीन का दाँत लगवा लो.

वह झल्लाया था, पागल हो गई हो. मैं भी तो कह सकता हूँ तुम्हारा कब कितना छोटा है, तीन इंच की हील वाला सैंडल पहना करो. या सरोजनी नगर की सौ रुपये की चप्पल मत पहनो. तुमने अपने बालों में जो कलर करवाया है, एकदम बकवास है. बरगंडी मुझे पसन्द ही नहीं है. तुमने यह तो जींस पहन रखी है..

स्टॉप दिस! स्टॉप दिस नॉनसेंस!

क्यों अब क्यों गुस्सा हो! मेरी बात नॉनसेंस क्यों हैं? हमारी आपस में हाथापाई तक हो गई थी. अंत में मैं उसको धकियाकर लौट आई थी. अच्छा हुआ, आई एम रिलीव्ड.

चलो ठीक ही हुआ. मोना ने कहा था.

अब तक चुप बैठी थी अनु. रिंकु ने उसे उकसाया था, तुम कब्र में क्यों बैठी हो, जो मन में है, कह दो. नहीं तो पेट में दर्द होगा. वे हँसी थीं.

अनु भड़की थी - कोई ज़रूरी है? तुम्हारा कथा-पुराण काफ़ी नहीं है क्या?

ज़रूरी है अन्य! हम तेरी अपनी ही हैं यहाँ और कोई नहीं है. न तेरे घर के लोग और न ही हमारे घर के. हम आपस में मिलकर हंस सकती हैं तो मिलकर रो भी सकती हैं. यहाँ तुम्हारी माँ नहीं है जिसकी गोदी में सिर रखकर, चैन मिल जाएगा, हाँ कोई प्रेमी हो तो कह नहीं सकती.

अनु गर्म घी में डाले बघार की तरह छिटकी थी. कोई प्रेमी नहीं चाहिये मुझे. ज़िंदगी में मुझे क्या करना है, जानती हूँ. मुझे क्या चाहिये यह भी जानती हूँ. मुझे सारी ज़िंदगी इस मैकडॉनल्ड की नौकरी नहीं करनी. बी. ए. हो जाएगी. मैनेजमेंट करूँगी. आगे आना है मुझे.

ठीक है, ठीक है... सभी जानते हैं अपने बारे में हम सभी यहाँ हमेशा के लिए रहने वाले हैं क्या? पढ़ाई का खर्च चला रहे हैं बस! अनु कुछ देर चुप रही थी. फिर बोली थी, इस बार वह बस स्टॉप पर पहुँच गया था. मेरी शिफ़्ट ड्यूटी होती है, वह जानता है. समय भी एक तरह से निश्चित-सा ही होता है. मुझे देखकर पास आ गया था, हाय! कैसी हो? कितने दिनों से नहीं मिलीं. फ़ोन क्यों नहीं किया?

कर नहीं सकी? इतने कस्टमर होते हैं कि साँस लेना तक मुश्किल हो जाता है. यह समय ही ऐसा होता है. ड्यूटी के बाद तो कर सकती थी.

बहुत थक चुकी होती हूँ. घर जाकर सो जाती हूँ.

कुछ नया तो नहीं है. पहले भी तो किया करती थी. अब क्या हो गया?

कुछ नहीं हुआ. बताया न अभी तुम्हें

कितना परेशान रहा मैं. मेरी मिस्ड कॉल का भी जवाब नहीं देती हो. क्यों?

कुछ खास नहीं रह गई होंगी.

और मेरे एस एम एस. उनका क्या हुआ? फ़ोन करता हूँ तो अटेंड नहीं करती हो. वह गुस्से में था.

मैं आगे बढ़ी थी, मेरी बस आ गई थी, उसने मेरी बाँह पकड़ ली थी. रुक जाओ, अगली बस से चली जाना.

खींचातानी में बस निकल गई थी.

बेकार में मेरी बस निकलवा दी तुमने. अब देर से पहुँचूँगी.

तो क्या हुआ? एक दिन देर से नहीं पहुँच सकती. बस की ज़्यादा चिंता है, और मेरी? मैं जो यहाँ खड़ा हूँ आधे घंटे से, उसका कुछ नहीं वह तिलमिलाया था.

आख़िर मैं क्या हूँ? क्या हूँ मैं तुम्हारे लिए? उसने कसके मेरा हाथ पकड़ लिया था.

मैंने झटके से हाथ छुड़ाया था. तुम जानना ही चाहते हो, ज़रूर जानना चाहते हो. तो सुनो - यह बस स्टॉप है न. तुम भी बस स्टॉप हो. मैं तब तक यहाँ खड़ी रहूँगी जब तक आगे की बस नहीं आ जाती. उसके आते ही मैं उसमें चढ़ जाऊँगी. समझे.

स्टॉप पर बस आकर रुकी थी. मैं भागकर उसमें चढ़ गई थी. और फुटबोर्ड पर पैर रखकर ज़ोर से चीखी थी - बसस्टॉप कहीं का!! मोना ने ठहाका लगाया था.

काफ़ी मज़ेदार नाम है.

वे तीनों बाहर आई थीं.

बाहर भीड़ छँट चुकी थी.

मैकडॉनल्ड के पुतले की गोदी खाली थी. उसमें अब कोई बच्चा नहीं बैठा था. उसने ऑटो रोका था और उसमें एक साथ तीनों बैठ गईं थीं.

© 2009 Kamal Kumar; Licensee Argalaa Magazine.

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