इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
आख़िरी शिफ़्ट थी. जब तक सब निपटा बारह बज चुके थे. वे तीनों एक टेबल पर बैठ गयी थीं. सुविधा इसी में थी कि कुछ खाकर ही घर जाएँ.
सोनू चिहुँकी थी. मओना कि हिलाया था - फिर, कल क्या हुआ? आया था वो?
आया था, पर वही गुस्से से तना खड़ा था बोला - देर से क्यों आई हो, कितनी बार कहा है तुम्हें... इन्तज़ार करना मुझे अच्छा नहीं लगता.
देर हो गई! तो क्या हुआ! तुम लौट सकते थे. क्यों किया इन्तज़ार.
उसका चेहरा लटक गया था. मैंने बहलाया था - बुरा लगा?
तो?
मैंने शुरू में ही कहा था, डोंट गेट इमोशनल विद मी. मेरी अपनी प्राब्लम्स हैं मेरा एक छोटा बच्चा है. पति नामधारी एक व्यक्ति है मेरे जीवन में
उसने मुझे दोनों हाथों से पकड़ कर अपनी तरफ़ खींचा था.
बाँहों में घेर कर चूमा था.
तुम्हें इस नरक से मुक्ति दिलाना चाहता हूँ. मेरे लिए एक नया नरक बनाना चाहते हो... मुझे हँसी आई थी. फिर नाराज़ हो गए. देखो, मैंने तुम्हें शुरू में ही कह दिया था. हम लोगों के बीच कोई रिप्लेसमेंट, कोई विस्थापन जैसा नहीं होगा.
पर मुझे तुम्हारी हालत देखकर गुस्सा आता है. क्यों सह रही हो यह सब...
वह एक बार कम्पटीशन में पास हो जाए सब ठीक हो जाएगा. तब मुझे यह नौकरी करने की ज़रूरत नहीं होगी. इस बार वह कम्पटीशन में आ ही जाएगा. फिर सब बदल जाएगा.
और अगर नहीं आया तो? क्या ज़रूरी है वो इस बार पास हो ही जाए. आख़िर उसकी बैकग्राऊंड क्या है?
उस छोटे से कस्बे में उसे एक्सपोजर क्या मिला होगा. उसने कोई अकादमी भी ज्वाइन नहीं कर रखी. इतना हार्ड कम्पटीशन है. उसके जैसे, उससे अच्छे बहुत से हैं... क्या सभी आ जाते हैं?
मुझे गुस्सा आया था, तुम मेरे घर की रामायण मत बाँछो. अपने मतलब से मतलब रखो. तुम्हारे पास आई थी कुछ अच्छा समय गुज़ारने के लिए... एक तुम हो कि. ओ के. उसने अपनी गलती मानी थी. हमने रेस्तराँ में साथ बैठकर खाना खाया था. उसने जाते हुए मुझे चूमा था. एक रात मेरे कमरे में आ जाओ. रात की ड्यूटी वाले दिन. हम सात-आठ घंटे साथ बिताएँगे. ड्यूटी ख़त्म होने के समय मैं तुम्हें छोड़ दूँगी.
उसके भीतर रेत के बगुले उठ रहे थे. बातचीत का आख़िरी हिस्सा उसने नहीं बताया था.
और वो तुम्हारा रूम पार्टनर? वो नहीं है, घर गया है. आ जाओ कब आओगी, वह बेचैन था.
भारबरि बेरी तले जैसे कोई छाँह ढूँढता हो. वह भी उसके पास आ गई थी. वह पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था. उन्होंने सात-आठ घंटे साथ गुज़ारे थे. जाने लगी तो उसने भरपूर चुंबन लिया था, वी हैद लॉट्स ऑफ़ फ़न! फिर कब आओगी.
उसने रोका था, अभी की सोचो और जल्दी से घर के मोड़ तक छोड़ो मुझे.
लेकिन इस तरह नहीं आ-जा सकती थी. पर वह मानता ही नहीं. अब उसका इमोशनल ब्लैकमेल करने लगा था.
मोना ने उसे सोचते देख आख़िरी टुकड़ा पकड़ा था रेस्तराँ के बाद कहाँ गये थे. क्या हुआ था? कुछ नहीं उसने बाहर आकर अँधेरे में एक हग ली थी और चूमा था.
पर तुम तो परेशान लग रही हो. क्या हुआ क्या है?
कुछ नहीं, पर वह बहुत ज़िद करने लगा. मुझ पर रोब मारता है. जिद करता है कि मैं उसके पास आऊँ. हर रोज़.
फिर क्या करोगी तुम. फँस गई न चक्कर में
वह सीधी बैठ गई थी. अब की उसको सीधे और साफ़ शब्दों में कहूँगी - तुम सैलड हो यानी सैलड बस मेन कोर्स के साथ लिया तो लिया, नहीं तो ज़रूरी नहीं.
वे तीनों ठहाका मारकर हँसी थीं गुड वन! मेन कोर्स वह तेरा पति और यह सैलड. वेरी इन्नोवेटिव. पर सैलड ही क्यों, वह डेसर्ट भी तो हो सकता है?
नहि. डेसर्ट मुझे पसंद नहीं
सोनू, तेरा क्या हाल है? कैसा चल रहा है? अनु ने पूछा था.
कुछ नहीं सब ख़त्म.
क्या हुआ? अनु उसके पास खिसक आई थी.
यूँ तो सब ठीक था. उसका मुँह बंद रहता तो सब ठीक ही लगता था. पर जैसे ही वह अपना मुँह खोलता उसका एक मेटल का दाँत दिखता था. मैंने पूछा था - यह मेटल का दाँत क्यों लगवाया?
मोटर बाइक से एक एक्सीडेंट हो गया था. दाँत टूट गया था. पर यह सवाल क्यों पूँछा?
यूँ ही मन में आया था. कुछ देर चुप रहकर मैंने अपनी बात पूरी की थी - मुझे यह अच्छा नहीं लगता.
क्यों? तुम्हें इससे क्या फ़र्क पड़ता है? वह नाराज़ हुआ था.
पड़ता है फ़र्क. मुझे इससे फ़र्क पड़ता है. जब तुम मुझे चूमते हो तो बंद आँखों के सामने भी तुम्हारा यह दाँत दिखाई देता है.
नॉनसेंस
क्यों नॉनसेंस क्यों? मेरे लिए इतना नहीं कर सकते. इसे निकलवाकर पोर्सलीन का दाँत लगवा लो.
वह झल्लाया था, पागल हो गई हो. मैं भी तो कह सकता हूँ तुम्हारा कब कितना छोटा है, तीन इंच की हील वाला सैंडल पहना करो. या सरोजनी नगर की सौ रुपये की चप्पल मत पहनो. तुमने अपने बालों में जो कलर करवाया है, एकदम बकवास है. बरगंडी मुझे पसन्द ही नहीं है. तुमने यह तो जींस पहन रखी है..
स्टॉप दिस! स्टॉप दिस नॉनसेंस!
क्यों अब क्यों गुस्सा हो! मेरी बात नॉनसेंस क्यों हैं? हमारी आपस में हाथापाई तक हो गई थी. अंत में मैं उसको धकियाकर लौट आई थी. अच्छा हुआ, आई एम रिलीव्ड.
चलो ठीक ही हुआ. मोना ने कहा था.
अब तक चुप बैठी थी अनु. रिंकु ने उसे उकसाया था, तुम कब्र में क्यों बैठी हो, जो मन में है, कह दो. नहीं तो पेट में दर्द होगा. वे हँसी थीं.
अनु भड़की थी - कोई ज़रूरी है? तुम्हारा कथा-पुराण काफ़ी नहीं है क्या?
ज़रूरी है अन्य! हम तेरी अपनी ही हैं यहाँ और कोई नहीं है. न तेरे घर के लोग और न ही हमारे घर के. हम आपस में मिलकर हंस सकती हैं तो मिलकर रो भी सकती हैं. यहाँ तुम्हारी माँ नहीं है जिसकी गोदी में सिर रखकर, चैन मिल जाएगा, हाँ कोई प्रेमी हो तो कह नहीं सकती.
अनु गर्म घी में डाले बघार की तरह छिटकी थी. कोई प्रेमी नहीं चाहिये मुझे. ज़िंदगी में मुझे क्या करना है, जानती हूँ. मुझे क्या चाहिये यह भी जानती हूँ. मुझे सारी ज़िंदगी इस मैकडॉनल्ड की नौकरी नहीं करनी. बी. ए. हो जाएगी. मैनेजमेंट करूँगी. आगे आना है मुझे.
ठीक है, ठीक है... सभी जानते हैं अपने बारे में हम सभी यहाँ हमेशा के लिए रहने वाले हैं क्या? पढ़ाई का खर्च चला रहे हैं बस! अनु कुछ देर चुप रही थी. फिर बोली थी, इस बार वह बस स्टॉप पर पहुँच गया था. मेरी शिफ़्ट ड्यूटी होती है, वह जानता है. समय भी एक तरह से निश्चित-सा ही होता है. मुझे देखकर पास आ गया था, हाय! कैसी हो? कितने दिनों से नहीं मिलीं. फ़ोन क्यों नहीं किया?
कर नहीं सकी? इतने कस्टमर होते हैं कि साँस लेना तक मुश्किल हो जाता है. यह समय ही ऐसा होता है. ड्यूटी के बाद तो कर सकती थी.
बहुत थक चुकी होती हूँ. घर जाकर सो जाती हूँ.
कुछ नया तो नहीं है. पहले भी तो किया करती थी. अब क्या हो गया?
कुछ नहीं हुआ. बताया न अभी तुम्हें
कितना परेशान रहा मैं. मेरी मिस्ड कॉल का भी जवाब नहीं देती हो. क्यों?
कुछ खास नहीं रह गई होंगी.
और मेरे एस एम एस. उनका क्या हुआ? फ़ोन करता हूँ तो अटेंड नहीं करती हो. वह गुस्से में था.
मैं आगे बढ़ी थी, मेरी बस आ गई थी, उसने मेरी बाँह पकड़ ली थी. रुक जाओ, अगली बस से चली जाना.
खींचातानी में बस निकल गई थी.
बेकार में मेरी बस निकलवा दी तुमने. अब देर से पहुँचूँगी.
तो क्या हुआ? एक दिन देर से नहीं पहुँच सकती. बस की ज़्यादा चिंता है, और मेरी? मैं जो यहाँ खड़ा हूँ आधे घंटे से, उसका कुछ नहीं वह तिलमिलाया था.
आख़िर मैं क्या हूँ? क्या हूँ मैं तुम्हारे लिए? उसने कसके मेरा हाथ पकड़ लिया था.
मैंने झटके से हाथ छुड़ाया था. तुम जानना ही चाहते हो, ज़रूर जानना चाहते हो. तो सुनो - यह बस स्टॉप है न. तुम भी बस स्टॉप हो. मैं तब तक यहाँ खड़ी रहूँगी जब तक आगे की बस नहीं आ जाती. उसके आते ही मैं उसमें चढ़ जाऊँगी. समझे.
स्टॉप पर बस आकर रुकी थी. मैं भागकर उसमें चढ़ गई थी. और फुटबोर्ड पर पैर रखकर ज़ोर से चीखी थी - बसस्टॉप कहीं का!! मोना ने ठहाका लगाया था.
काफ़ी मज़ेदार नाम है.
वे तीनों बाहर आई थीं.
बाहर भीड़ छँट चुकी थी.
मैकडॉनल्ड के पुतले की गोदी खाली थी. उसमें अब कोई बच्चा नहीं बैठा था. उसने ऑटो रोका था और उसमें एक साथ तीनों बैठ गईं थीं.
© 2009 Kamal Kumar; Licensee Argalaa Magazine.
This is an Open Access article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution License, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original work is properly cited.
नाम: कमल कुमार
जन्म स्थान: अम्बाला (अविभाजित पंजाब, अब हरियाणा)
शिक्षा: बी. ए. (अर्थशास्त्र ऑनर्स), एम. ए. (हिंदी), पंजाब विश्वविद्यालय. विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान और स्वर्ण पदक प्राप्त. एम. फिल, पी-एच. डी. (दिल्ली विश्वविद्यालय)
- एम. फिल साठ के बाद की कविता पर और पी. एच. डी. अग्येय की कविता पर
अनुभव: आवासीय लेखक, प्रोफ़ेसर - महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय विशविद्यालय (वर्धा); रिसर्च एसोसिएट - मुम्बई उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला; विजिटिंग प्रोफ़ेसर - मुम्बई, पुणे, अहमदाबाद, इलाहाबाद विश्वविद्यालयों में तथा कैथोलिक यूनिवर्सिटी, बेल्ज़ियम में.
- अन्तर्विषयी अध्ययन - साहित्य, स्त्री विमर्श और मीडिया.
संप्रति: दिल्ली विश्वविद्यालय के जीज़स एण्ड मेरी कॉलेज में असोसिएट प्रोफ़ेसर और दिल्ली विश्वविद्यालय के दक्षिण परिसर में गेस्ट फ़ैकल्टी के साथ
प्रकाशित रचनायें: सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक विषयों पर सौ से भी अधिक लेख विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित - नवभारत टाइम्स, दैनिक हिन्दुस्तान, जनसत्ता, साहित्य अमृत, दैनिक जागरण, राष्ट्रीय सहारा, इंडिया टुडे, समकालीन साहित्य, ज्ञानोदय, वागर्थ, अक्षरा, साक्षात्कार, वसुधा, दस्तावेज, नई धारा, मनस्वी संबोधन, पुनश्चय, हंस, कथादेश, कथाक्रम, सद्भावना दर्पण इत्यादि में प्रकाशित.
कविता संग्रह: 1. बयान, सन्मार्ग पब्लिशिंग हाऊस, 1981
2. गवाह, नेशनल पब्लिशिंग हाऊस, 1990
3. साक्षी हैं हम, पराग प्रकाशन, 1999
4. सूर्य देता है मन्त्र, आलेख प्रकाशन, 2005.
कहानी संग्रह: 1. पहचान, नेशनल पब्लिशिंग हाऊस, 1985
2. फिर वहीं से शुरू, सामयिक प्रकाशन, 1998.
3. क्रमश: भारतीय ज्ञानपीठ,
4. वैलंटाईन डे, इन्द्रप्रस्थ प्रकाशन, 2002
5. पूर्णविराम, भारतीय ज्ञानपीठ, 2005.
6. घर बेघर (2007) पेंगुअन (याजा बुक्स)
उपन्यास: 1. अपार्थ, नेशनल पब्लिशिंग हाऊस, 1986
2. आवर्तन, नेशनल पब्लिशिंग हाऊस, 1992
3. हैमबर्गर, हिन्दी बुक सेंटर, 1996
4. यह खबर नहीं अखिल भारती प्रकाशन, 2002
5. मैं घूमर नाचुहूँ (2009)
6. पासवर्ड (2009)
आलोचना, शोध:
1. नयी कविता की परम्परा और भूमिका, अखिल भार्ती प्रकाशन, 1988
2. अग्येय की काव्य संवेदना, अखिल भारती प्रकाशन, 1997
3. शांतिप्रिय द्विवेदी व्यक्तित्व और क्रितित्व, साहित्य अकादमी, 1992
4. शमशेर का कवि क्रितित्व, दिल्ली विशविध्यालय प्रकाशन, 1995
5. कथा-अन्तर्कथा, प्रभात प्रकाशन
: कमला नेह्रू नारीमुक्ति की पुरधा, कांग्रेस, 1985.
शताब्दी समारोह की पुस्तक समिति के अन्तर्गत प्रकाशित, तत्कालीन राष्ट्रपति ग्यानी जैलसिंह द्वारा राष्ट्रपति भवन में इस पुस्तक का लोकापर्पण
: स्त्री संशब्द: विवेक और विभ्रम, अमित प्रकाशन, 2005.
: असंगठित क्षेत्र में इस्त्रियों के अधिकार, नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा 2001 प्रकाशित. इस पुस्तक की चह आव्रित्तियां हिन्दी में और एक संस्करण कन्नड़ में प्रकाशित.
अनुवाद: अपार्थ उपन्यास का अंग्रेज़ी में अनुवाद, शिप्रा, 1996.
मर्सीकिलिंग एण्ड अदर स्टोरीज - कहानी संग्रह अंग्रेज़ी में अनुदित. नेशनल पब्लिशिंग हाऊस, 1996.
स्प्रिंग कम्ज इन कैलेण्डर्स, कविता संग्रह अंग्रेज़ी में अनूदित. नेशनल पब्लिशिंग हाऊस, 2005
स्त्री-विमर्श: सचिव, भारतीय महिला परिषद (अॉल इंडिया वूमन कांफ्रेंस), दक्षिण दिल्ली शाखा.
: संचालक, स्त्री अध्ययन और विकास केन्द्र (वुमन स्तुडी एण्ड डवलपमेंट सेंटर), दिल्ली विश्वविद्यालय (जे. एम. सी.)
सम्पादक संचालक, पत्रिका और स्कॉलर्शिप, दिल्ली विश्वविद्यालय, महिला परिषद (यूनिवर्सिटी वुमन असोसिम्शन ऑफ़ दिल्ली)
: सदस्य, अन्तर्राष्ट्रिय विश्वविद्यालय महिला परिषद
: राष्ट्रिय स्त्री अध्ययन परिषद
: स्त्री शक्ति सम्बन्ध (वुमन पावर कन्टक्ट)
: स्त्रियों में जाग्रति लाने के लिए कई प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया गया - व्याख्यान, गोष्ठियाँ, सभाएँ, नाटक, नुक्कड़ नाटक, फ़िल्म इत्यादि के माध्यम से.
: आर्थिक स्वावलम्बन के लिए - कम्प्यूटर ट्रेनिंग, सिलाई, ब्लॉक प्रिंटिंग, फूड प्रिजरवेशन, बेकरी, मोमबत्ती बनाना इत्यादि का प्रशिक्षण दिया गया
: एन. जी. ओ. और संस्थाओं से सम्बन्ध
: इंडोलिका टुरोनेशिया, (टुरैनो इटली), इंडियन लिटेरेचर, प्रतिभा इंडिया, इंडिया अबरोड, आई. आई. सी. क्वाटरली जैंटलमैन, क्रिएटिव फ़ोरम, पोएट्री सोसाइटी जनरल, इवीज, फ़ैमिना इत्यादि में अनूदित कहानियाँ, कविताएँ, आलेख अंग्रेज़ी में प्रकाशित.
प्रकाशक: भारतीय ग्यान्पीठ, साहित्य अकादमी, नेशनल पब्लिशिंग हाऊस, सामयिक प्रकाशन, पराग प्रकाशन, आलेख प्रकाशन, अखिल भार्ती प्रकाशन, इन्द्रप्रस्थ प्रकाशन, प्रभात प्रकाशन इत्यादि.
अन्तर्राष्ट्रीय- राष्ट्रिय कान्फ्रेंस में पत्र प्रस्तुति: (इटली), बीजिंग (चीन), बेबीलोन (बगदाद), जार्जिया, अटलांटा (अमेरिका), मॉरिशस, इस्लामाबाद, लाहौर (पाकिस्तान), ट्रिनिडाड, लंदन, बरमिंघम, मैनचेस्तर (यू. के.)
रच्नाएं अंथालॉजी में: कई अंथालॉजी और हिन्दी साहित्य के इतिहास में शामिल की गई.
: अरलीन जैद - 'इन देयर ऑन वोएसिज़'
: जगदीश चतुर्वेदी - समकालीन कविता
: चित्रा मुद्गल - देह देहरी
: चनामिका -कहती हैं औरतें
: महेश दरपण - बीसवीं शताब्दी की कहानी
: साहित्य के इतिहास में उल्लेख - प्रकाश मनु द्वारा लिखित उपन्यास का इतिहास
: गोपल प्रसाद द्वारा लिखित उपन्यास का इतिहास, कहानी का इतिहास
: जगदीश चतुर्वेदी द्वारा आधुनिक साहित्य का इतिहास.
: कई 'हू ज़ हू' में नाम शामिल
रचनाओं पर शोधकार्य: कई विश्वविद्यालयों में कहानियों और उपन्यासों पर शोध कार्य अब तक अपार्थ, आवर्तन, क्रमश:, गवाह, साक्षी हैं हम, यह खबर नहीं, पर एम. फिल के लघु शोध प्रबन्ध लिखे जा चुके हैं.
: कहानियों और उपन्यासों पर चार पी. एच. डी संपन्न
: इस समय अजमेर (राजस्थान), बेंगलूर (कर्नाटक), हैदराबाद और पटियाला (पंजाब) से कहानियों और उपन्यासों पर पी-एच. डी.
कविताएं, कहानियां, उपन्यासों से उद्धरण शोधकार्य के लिए शोध सामग्री के रूप में उपयोग.
आकाशवाणी-दूर्दर्शन: "गैम्बरगर" उपन्यास पर रेडियो धारावाहिक
"हैमबर्गर" पर टेलीविजन धारावाहिक
: प्रसार भारती द्वारा 'जंगल' कहानी पर फ़िल्म
: प्रसार भारती द्वारा लेखक के रूप में - पर फ़िल्म.
फ़िल्म: अशोक बजरानी ने 'समयबोध' कहानी पर फ़िल्म 'उत्तेजना' बनाई. प्रीति खरे कीया पहली फ़िल्म थी. मीरा दीवान की फ़िल्म के लिए स्क्रिप्ट लेखन
: दूर्दर्शन पर पत्रिका साहित्यिक कार्यकर्म की बीस-बाईस साल तक कंपेयर आकाशवाणी और दूर्दर्शन के सामाजिक, सांस्क्रितिक और साहित्यिक कार्यक्रमों की चर्चाओं में भागीदारी.
दूर्दर्शन और आकाशवाणी के विशेष कार्यक्रमों के लिए साहित्यकारों और विशिष्त व्यक्तियों के साक्षात्कार:
निर्मला वर्मा का, दूर्दर्शन और आकाशवानी पर
अग्येय का दूर्दर्शन पर
भीष्म साहनी का दूर्दर्शन और आकाशवाणी पर
जैनेन्द्र कुमार का दूर्दर्शन्पर
महाश्वेता देवी का पत्रिका के लिए
इसके अलावा समकालीन लगभग सभी रचनाकारों - रामदरश मिश्र, रजेन्द्रा यादव, नामवर सिंह, कमलेश्वर, नित्यानंद तिवारी, महीप सिंह, कुसुम अंसल, चंद्रकान्ता, चित्रा मुद्गल, म्रिदुला गर्ग, राजी सेठ, नासिरा शर्मा, इन्दुजैन इत्यादि लेखिकाओं का दूरदर्शन पर, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिकाओं के लिए साक्षात्कार और चर्चाओं के कम्पेयर.
सम्मान एवं पुरस्कार: साहित्यकार सम्मान, हिंदी अकादेमी दिली, साहित्य भूषण सम्मान, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, साधना श्रेष्ठ सम्मान, मध्य प्रदेश, साहित्य श्रेष्थ सम्मान बिहार), प्रवासी भारतीय साहित्य और कला सभा जार्जिया अटलांटा (अमेरिका), द्वारा रचनाकर सम्मान, साहित्यकार सम्मान, बुद्धिजीवी और संस्क्रिति समिति (उत्तर प्रदेश)'अस्मिता' प्रवासी, भारतीयों की अमेरिका में संस्था द्वारा 'घर और औरत' श्रिंखला की कविताओं पर सम्मान. साहित्य भार्ति सम्मान - राष्ट्र भाषा प्रचार समिति.
सदस्यता: ऑल इंडिया असोसिएशन ऑफ़ वीमन स्टडीज, यूनिवर्सिटी वीमन असोसिएशन, पोएट्री सोसाइटी इंडिया, इंडिया इंटर्नेशनल सेंटर, ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया, भार्तिय लेखक संगठन, लेखिका संघ, इंडियन सोसाइटी ऑफ़ ऑथर्स, रिचा, (उपाध्यक्ष), अखिल भारतीय महिला संघ.
अभिरूचियाँ: तैलचित्र बनाना और बोंसाई उगाना.
यात्राएँ: लगभग सारा भारत हॉलैण्द, फ़्रांस, थाइलैंड, बैकेंग, सिंगापुर, मलेशिया और आस्ट्रेलिया
संपर्क: डी-38, प्रेस एन्क्लेव, साकेत, नई दिल्ली - 110017