अर्गला

इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका

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अनुसृजन


वरयाम सिंह

हमारी ज़िंदगी डरी हुई है इस आसमान से
और हमारी ज़िंदगी से डरा हुआ है आसमान
अच्छा है होना लोहे की नसों वाला स्मारक
मुलायम धमनियाँ मनुष्य के लिये ठीक नहीं
गिर रहे हैं गिर रहे हैं मृत पत्ते
मातम के वक़्त ऐसी चापलूसी से ज़्यादा कुछ भी मीठा नहीं ......
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देवेंद्र चौबे

मैं एक नदी बनना चाहता हूँ
अगर मेरी प्रेमिका
एक मछली हो
और वह मेरी लहरों पर
तैरती जाये. ......
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गंगा प्रसाद विमल

मन्द मन्द
लिखती है जैसे कविता ख़ुद को
उमगता है दिन भोर
अनस्तित्व से अस्तित्व में

तम का मौन त्याग ......
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गंगाधर वसंत

साहित्य समाज का दर्पण है और स्वतंत्र विचारों का प्रस्तोता है लेकिन अनुवादक ऐसे निजी अनुभवों शिक्षा या संबंधों के ज़रिये प्रस्तुतिकरण के एक आयाम तक तो जा सकता है लेकिन यह कहना उचित न होगा कि अनुवाद में मूल लेखक के गूढ़ार्थों का पूर्ण प्रस्तुतिकरण हो सकता है. भागीरथ मिश्र ने साहित्य और समाज के संदर्भ में कहा है. साहित्य और समाज का अटूट और अगाध संबंध है. समाज की जीवन धारा में साहित्य कमलवत विकसित होता है. वस्तुत: ......
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