अर्गला

इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका

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संपादकीय

अनिल पु. कवीन्द्र

जनवरी 2009, संस्करण 1, अंक 1

"पहचानिये तो, किसका यह नक़्शे कफ़े पा है
अक्सीर उठा लाया दुश्मन की गली से मैं."

हिंदुस्तान में रफ़्ता रफ़्ता तमाम तब्दीलियों के तहत जो मंज़र, हालात मंसूब हैं अनगिनत दिक्क़तों के बावज़ूद पुरजोश कोशिश ज़ारी है अरगला के ज़रिये - कि रचना धर्म को निबाहने वाले रचनाकारों के साथ तंगनज़र ख़ुमारी को बाज़ाफ़्ता ज़र्रे - ज़र्रे से ख़त्म किया जाए. हमें इंतज़ार है कि दख़लंदाज़ी उनकी हो जो अरगला की रवानी से रज़ामंद हैं. अरगला पत्रिका अपने पहले चरण में आपके सामने है यह दीगर बात है कि इस पत्रिका का हिस्सा सिर्फ़ और सिर्फ़ वही लोग हैं जो जनसंवेदना से जुड़े हैं. और जिन्हें बीते हुए सदी के बीत चुकी अनुभूतियों के इतिहास में दिलचस्पी है. वह इतिहास जो हमारी संस्कृति की उन गौरवशाली विभूतियों का है जिन्होंनें नई सदी की खेंप डाली और बीती सदी के अनुभवों से आगे आने वाली पीढ़ियों को तमाम ऐसे तोहफ़े दिये, जो सदैव स्मरणीय रहेंगे जिनमें उनकी अनुभूतियों, विचारों, सवेंदना, अनुभवों को एकसूत्र में बाँधने वाली धारा 'साहित्य' की तमाम विधाओं के ज़रिये वो हमेशा - हमेशा यादगार और महत्वपूर्ण हो गये. उनकी सारी जी जा चुकी प्रामाणिक बौद्धिक चेतना की परख और आत्मसातीकरण से नई पीढ़ी को सबक, अंदोलित होने की संभावनायें, जीवन में कठिनाई के साथ जटिल संश्लिष्ट जीवन शैली का निराकरण एवं तमाम संकल्पनायें जिन्हें अतीत ने छोड़ा; नई कोंपल, यौवन की खिलावट के लिए. उसे एक सदी से दूसरी सदी की पीढ़ियों को सौंपने और सुरक्षित रखने की ज़िम्मेदारी है.

यह पत्रिका एक ऐसे काल - खण्ड का हिस्सा है जिसमें हिन्दुस्तानी संस्कृति की विविधताएँ और विशिष्टताएँ छुपी है. हमारी कोशिश है कि हम उन अनुभूतियों को जगह दें, जिनका भरोसा इस बात में है कि कोई भी काम चाहे वो जिस भी रचना क्षेत्र में हुआ. महत्वपूर्ण वह व्यक्ति नहीं, महत्वपूर्ण रचना होती है क्योंकि रचना आप ही व्यक्ति की समूची पहचान या अस्मिता और व्यक्तित्व की बेहद सच्ची प्रमाणिक प्रयोगशाला है जहाँ व्यक्ति के तन का यंत्र यानि 'मानव - तंत्र' अपने असल रूप को ज़ाहिर करता है. ये वो व्यक्तित्व हैं जो इतिहास रच रहे हैं.

दूसरी बात - यह पत्रिका उन युवा प्रतिभाओं की आंतरिक खिलावट को बरक़रार रखने और उन्हें पल्लवित होने की पूरी आज़ादी महक से परिपूर्ण है यहाँ यह बात देखनी होगी कि युवा मन की रंगशाला को बेहद संजीदगी से उनके मुताबिक संजोया गया है ये ऐसे रचनाकार हैं जिंहें इतिहास रचना अभी बाकी है

तीसरी बात - जो इतिहास रच चुके हैं. उन्हें बतौर 'विरासत' पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास है ये ऐसे वरिष्ट साहित्यकार, स्वतंत्र रचनाधर्मी हैं - जो हिंदुस्तानी संस्कृति, समाज, परंपरा, इतिहास, भाषा, जातीयता एवं मानव - धर्म के ऐतिहासिक स्तंभ हैं. ये ऐसे ऐतिहासिक युग के रचयिता हैं जिसे हमें पढ़ना है, समझना है, जानना है, या फिर वो काल विवरण, शताब्दी, घटना एवं इतिहास के दुष्चक्र में फँसी उन छवियों के बारे में जो जीवित हैं; किन्तु उन्हें अस्तित्वहीन कर दिया है, वो इतिहास जो हमारे दस्तूरों का दस्तावेज़ हुए यहीं हैं.

- अनिल पु. कवीन्द्र

© 2009 Anil P. Kaveendra; Licensee Argalaa Magazine.

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