अर्गला

इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका

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गीत माधुर्य

जय प्रकाश सागर

गीत के बरे में

पूरी क़ायनात का सरापा गीत ही है. कोयल की कूक, झरनों का गिरता पानी, नदी की बलखाती लहरें, मृगच्छौनों की छलाँगें, समंदर की लहरों की टकराहट जिसे देखकर एवं सुनकर मन को अप्रतिम सुख का एहसास होता है. जो दरसल गीत संगीत की बुनियाद है. गौरतलब है कि गीत ' पेन किलर ' है. तभी खेतों में सँघर्ष करते मज़दूर गीत गा गाकर अपने काम को बड़ी ही सहजता से पूरी कर लेते है. धान रोपती औरतें ' धान रोपनी गीत ' गाती. चैत में सँघर्ष करके थक जाने के बाद किसान ' चैता ' गाते. आटा पीसने वाली औरतें ' जंतसार ' गाती हैं अर्थात या तो काम करते समय गीत गा गाकर अपने को सक्षम बनाती हैं अथवा काम करने बाद अपनी थकान मिटाने के लिये गीत गाते. दरसल गीत मन की प्रसन्नता का सूचक है. ज्यों व्यक्ति गीत गाता है, उससे पता चलता है कि वह खुश है और सबसे बड़ी चीज है. उसका यह वैयक्तिक स्वरूप उसका न होकर सबका हो जाता है क्योंकि जो श्रोता होता है, वह भी सिर्फ़ सुनकर सुख का एहसास करने लगता है. इससे यह पता चलता है कि हर इंसान के भीतर गीतात्मक्ता का दबा हुआ अलाव रहता है, जो हल्की फ़ूँक पाते ही सुलग उठता है.

गौरतलब है कि दुनिया में जितने आंदोलन हुये मसलन इंग्लिश रेवोल्यूशन, अमेरिकन रेवोल्यूशन, फ़्रेंच रेवोल्यूशन, वामपंथ रेवोल्यूशन एवं साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ हुये आंदोलनों में गीतों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. किसी भी देश के खेल अथवा वैज्ञानिक आविष्कार को राष्ट्र एवं धर्म के नाम पर बाँटकर उससे नफ़रत की जा सकती है लेकिन गीतों को राष्ट्र एवं धर्म के खेमें में बाँटकर उससे नफ़रत नहीं की जा सकती. गीत गाने के लिये चाहे किसी भी देश में शकीरा आयी हों या फ़रीदा ख़ानम, उनकी कला को राष्ट्र एवं धर्म में नहीं बाँटा जाता. इससे यह बिल्कुल साफ़ तौर पर दिखता है कि इस दुनिया में कला ही है, गीत हि हैं जो सबकों एक मंच पर बग़ैर किसी दुर्भावना के ला सकता है. अत: यदि गीत को 'विश्व भाईचारे' के लिये हथियार बनाया जाये तो इसके माध्यम से समूची दुनिया को रागात्मक्ता की माला में पिरोया जा सकता है. गीत की ताकत की वानगी इस शेर से बिल्कुल स्पष्ट हो जायेगी.

बिगड़े हालात को लम्हों में बना देते हैं
ये तो बिछड़े हुये लोगों को मिला देते हैं
आग नफ़रत की लगाते हैं सियासत वाले
हम कलाकार इसे नग्मों से बुझा देते हैं.

करेजा कुहुकत रहे

आवे रहि-रहि के गौंवा के याद
करेजा कुहुकत रहै
धनवा के बोझा से घुँघटा चेंताइल
भसुरा के लाजे से ओठ्वा सियाइल
खुले लगन फ़गुनवा के बाद
जोन्हरी-बजडिया के घुघ्घुर सुनाइल
बबुरा के कंछी पर खोंतवा बिनाइल
आवे जोंहियन के नेंवतल बारात
गुरवू ले मीथ लागे उखिया के गुल्ल्ला
करिया जमुनिया से फेल रस्गुल्ल्ला
बनजिलेबी में केतना सवाद
करेजा कुहुकत रहे

सवंरिया आइबे करी

उदबेगेला केतने सवाल
संवरिया ऐबे करी
चनवा बनल अलमुनिया के थरिया
तबहूँ दलनियाबे कऊवोले करिया
जब रिनिया बिछावेले जाल
निंदिया में महुवा के फुलवा कोंचाइल
हथवा के मेंहदी के रंगवू के पोंताइल
कहीं सुखे न नेहिवो के ताल
बितल असड्वा सावन नियराइल
गूर लिपतिसवा के दार उजराइल
अबा गंवे ऊकचेला छाल
जैसे चैतना के पूखरी झुराला
सिधरी नियर मन खूब चपिताला
ई नन्दिवू बजावेले गाल
संवरिया ऐबे करी

© 2009 Jai Prakash Sagar; Licensee Argalaa Magazine.

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