इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
छिंप्पियों के मौहल्ले का आखिरी बछोर, जहाँ से शेख़ों की बस्ती शुरू होती है, वहीं पर एक बड़ी पुरानी हक़ीम की दुकान थी. जिससे लगे पीछे के घर में हक़ीम जी और उनकी एक मात्र बेटी रहते थे. हक़ीम जी के परिवार में इस बेटी फातिमा के अलावा अब कोई न था, यूँ हक़ीम जी सारी बस्ती को ही अपने खानदान की तरह प्यार करते थे. इस बस्ती में इनका बड़ा आदर था, वे चमकदार गोल चेहरे पर सफेद दाढ़ी ......
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उसने कुछ अधजली मच्छर मारने की टिकिया इकट्ठी की, और उसे नारियल के छिलकों पर रखकर धुआँ किया. अधिक से अधिक मच्छर मरें सोचकर उसने घर की सभी खिड़कियाँ बंद कर दीं, और एक खाट बाहर निकालकर उसने घर के दरवाजे की कुण्डी भी लगा दी, और घर के सामने पीपल के वृक्ष के नीचे खाट बिछाकर सुस्ताने लगा. खपरैल से उठते धुएँ को देखते-देखते उसे झपकी सी लग आयी.
अचानक शोर सुनकर उसकी नींद खुल गयी. उसने ......
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धर्म दास मेंहदीरत्ता का आज तड़के ही देहांत हो गया. सारा मोहल्ला उनके घर के सामने खड़ा था. तरह - तरह की बातें हो रही थी. धर्म दास मेंहदीरत्ता का अब कोई नहीं है. दो साल पहले वे और उनकी पत्नी थे. पत्नी के देहांत के बाद वे अकेले रह गये थे. पिछले दो साल से अकेले ही जीवन व्यतीत कर रहे थे. उनका अधिकतर समय सामने वाले मंदिर में प्रभु भजन में बीतता था.
धर्म दास जी ......
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धड़ाम की आवाज के बाद कुछ पल की शान्ति और फिर उसके बाद जोर से रोने की आवाज आई. देवेन्द्र ने देविका को आवाज लगाई, " देखना देवी, यह किसके गिरने की आवाज है. " तभी रोने की आवाज और अधिक तेज हो गई. " देख देवी कहीं शुभ तो नहीं रो रहा है, लगता है गिर गया है, कहाँ है, शुभा. " देविका तुरन्त भागी. चार वर्ष का शुभ देवेन्द्र और देविका का प्यारा पोता बाथरूम में फिसल कर ......
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अरावली शृंखला की उपत्यका में बसा यह यह गाँव ढाई तीन सौ घरों की एक खुशहाल बस्ती है. पश्चिम की और अरावली की उन्मुक्त एवं रमणीक पहाड़ियाँ अपने पूरे यौवन का आनंद बिखेर रहीं हैं. यहाँ की भूमि उपजाऊ है. इस गाँव में अधिकतर परिवार कृषि पर निर्भर हैं. भरपूर फसल होने के कारण यहाँ के अधिकतर किसान ठीक ठाक स्थिति में हैं. गाँव के ठीक पश्चिम में एक घर जिसमें तीन प्राणी रहते हैं. यह घर भरोसी का है ......
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