इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
बारिश भीगती रात में
जब बिजली अचानक गुल हो जाय
डूब जाये
अंधेरे में समूचा घर
चौके से चिल्लाती है माँ
सब बैठे रहो अपनी जगह
और टटोलती है दियासलाई निश्चित जगह
आग रखती है चिमनी के सर
उबरता है डूबा घर
माँ
सचेत रहती है बरहमेश
रखती है दियासलाई निश्चित जगह
और चिमनी में अंधकार से घर
बचाने लायक मिट्टी का तेल
ताक पर.
सफेद झक कपड़ों में
कबूतर-सी फुदकती
तुम क्या संदेश फैलाती हो
पराये दर्द की रेखा
झाँकती है
तुम्हारे चेहरे से
विधवा आशंका
निपूता अहसास
असामाजिक मौत से
निरन्तर जूझते
तुम थकती नहीं हो
कैसे पहूँच जाती हो
दर्द हाँक लगाये
उससे पहले ही सहलाने उसे
पता है तुम्हें सिस्टर
इस अस्पताल की चारदिवारी से बाहर
दुनिया भी है एक
और बीमार.
सोमालिया-सोमालिया
कहते-कहते दाने
बिखर जाते हैं
बेसब्री से खेत में
डाल लेते हैं
अपने ही हाथों से
अपने उपर थोड़ी मिट्टी
सोमालिया को याद करते हुए
समय से पहले
अंकुराते हैं दाने
सोमालिया जाने के लिए
झटपट
पकती हैं फसलें
खलिहान से दाने
सोमालिया नहीं
मण्डी जाते हैं
रात के सन्नाटे में
गोदाम से आवाज आती है
सोमालिया-सोमालिया.
शरारती उद्दण्ड बालक-सी
आती बाद में
बहाना गढ़ लेती है पहले
उम्र पक गई थी इसीलिए आयी वह
कि स्टोव पर गिर गया था पल्लू
कि नियंत्रण छूट गया था
स्टीयरिंग से चालक का
झाँक रहा था छठी मंज़िल से
झोंक में गिरा इसलिए
आजिज़ आ चुके हैं
इस बहानेबाज़ी से हम
मास्साब देखो इसकी हरकत
कर दो क्लास में पिछली बेंच पर खड़ा
दिन भर के लिए
और तलब करो इसके गार्जियन को भी.
ज़रूरी है साठ के आसपास इसका सेवन
बाज़ार में बहुत से ब्राण्ड हैं पर
खुद बनाओ तो बात दूसरी है
मिसरी मिलाओ शक्कर की जगह फिर देखो
पेन्शन में लगी लाइन में एक ने दूसरे से कहा
महँगाई तो सबको बराबर मारती है
वह फर्क थोड़े करती है
सेवानिवृत और नौकरीशुदा में
महँगाई भत्ता सबको बराबर मिलना चाहिये
नहीं तो चुनाव में यही मुद्दा डुबायेगा इन्हें
दूसरे का जवाब था
आँवला इधर खूब आ रहा
प्राणतत्व च्यवनप्राश का
टेलीफोन में डायल-टोन जिस तरह
रजवाड़ी च्यवनप्राश की बात ही कुछ और है
च्यवनप्राश प्रेमी ने अपना तज़ुर्बा बताया
फोन से उसने मुझे कहा
बस नाम ही है उसका वृद्ध आश्रम
माहौल सुविधा घर जैसी है
कोई तकलीफ नहीं होगी
हम आते रहेंगे माह-दो माह
च्यवनप्राश का बखान कर रहा था जो
यकबयक चुप हो गया
आँखे डबडबा आयी उसकी
जब बैंक क्लर्क ने कहा
जीवित होने का प्रमाण-पत्र लाओ
तब मिलेगी पेन्शन
नहीं कुछ नहीं कहता
च्यवनप्राश का ब्राण्ड अम्बैसडर
पेंशन और वृद्ध आश्रम के बारे में
बस च्यवनप्राश की ही बघारता है.
इस कदर कि
टूट कर दोहरा होना चाहता हूँ
जो भँवर खींचे है मुझे
उसी से बतियाना चाहता हूँ
अंधा कुँआ
जिसकी जगत नहीं
नहीं पनिहारी के बोल
सुनी नहीं जिसने घिर्री की आवाज
डूबा नहीं उसमें कोई डोल
खंगालना चाहता हूँ.
नेकी कर दरिया में डाल
कहावत उसने इस तरह कही
नेकी कर जूते भी खा
यह कहते उसका चेहरा जाने कैसे-कैसे हो गया
हुआ ऐसा
कि उसे अहसास रहा वह जो कर रहा है नेकी है
कि वही कर सकता है नेकी चूँकि वह अलग है सबसे
प्रतिफल की भी आशा रही तहों में दबी
प्रशंसा की भी
इसी में कसर होने पर
बिगड़ा उसका जायका
बिगाड़ी उसने कहावत
बेहतर है पेश्तर दरिया ढूँढा जाय
कहावत बदलने की नौबत ही न आए.
हत्या करने के बाद
हत्यारा शामिल होता है शव यात्रा में
मृतक परिवार को देता सांत्वना
ईश्वर को यही मंजूर था शायद
कि शरीर तो चोला है
अजर-अमर है आत्मा
हमारी संस्कृति में है
घाव भरने की अद्भुत क्षमता
ऐसे ही हत्यारा लेता है सदैव
ईश्वर धर्म संस्कृति की आड़
ऐसे ही ईश्वर धर्म संस्कृति
बचाते रहे हैं सदैव हत्यारे को.
© 2009 Pratap Rao Kadam; Licensee Argalaa Magazine.
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नाम: प्रताप राव कदम
उम्र: 62 वर्ष
शिक्षा: एम. कॉम., पी-एच. डी.
संप्रति: प्रोफेसर एवं वाणिज्य विभागाध्यक्ष, श्री माखनलाल चतुर्वेदी शासकीय स्नातकोत्तर कन्या महाविद्यालय, खण्डवा (म. प्र .)
कवितायें: देश भर की सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित .
कविता संग्रह: एक तीली बची रहेगी, कहा उसने और हँसा, बीज की चुप्पी, वसुधा पत्रिका के अनुषंग एक कविता-पुस्तिका. एक कविता संग्रह प्रकाशनाधीन.
कहानी संग्रह: यह बाजार काल. एक कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन.
अन्य भाषाओं से अनुवाद: कुछ कविताओं का अन्य भाषाओं (मराठी, गुजराती, पंजाबी, मैथिली) में अनुवाद
सम्मान एवं पुरस्कार: वागीश्वरी सम्मान, शरद जोशी सम्मान (म. प्र. साहित्य अकादमी) शरद बिल्लौर स्मृति सम्मान, अहिल्या सम्मान, बस्तर अंचल का जनकवि ठाकुर पूरणसिंह स्मृति सूत्र सम्मान.
संपर्क: 11, शकुन नगर, खण्डवा 450001 (म. प्र.)