अर्गला

इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका

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"पथराए हुए लोग यहाँ इंसाँ न हो पाए
हज़ारों संग अंदाज़ इक दाग़ न धो पाए."

अर्गला का मतलब है - वे विशिष्ट रंग जो सूर्योदय के रंग बिरंगे बादलों से होकर साँझ बेला के रँगीन बादलों की शक्ल में आसमान के भीतर शबोरोज़ बिखरते हैं. ये रंग जीवन के रंग हैं, ये रंग सृष्टि के रंग हैं, ये रंग क़ायनात के रंग हैं जिसमें आदमी हर रोज़ जिया करता है. उसी शफ़क़ की एक समूची रंगशाला है - "अर्गला". 'शिखर' के रँगों में ढले साहित्यिक कृतिकारों के अंश उस क्षितिज पर हैं जहाँ अनुभूति, अनुभव और सृजनशीलता की समूची रँगीनियाँ संज़ीदगी, रूमानियत, मधुरतम छवियाँ मौज़ूद हैं. इन रचनाकारों ने भौगोलिक सीमाओं का अतिक्रमण कर ज़मीं की तमाम श्रुतुओं, फसलों और मानवीय संवेदनाओं को पूर्णत: जज़्ब किया है और उसे अपनी रचनाओं के ज़रिए भिन्न भिन्न समयकाल, परिस्थितियों में आने वाली पीढ़ी को सौंप दिया. शिखर में आने वाले रचनाकारों की कृतियों के रंग इतने गाढ़े, पक्के और परिपक्व हैं जो सूर्योदय की पहली सुर्ख़ रश्मि से उभरते हैं और साँझ के रंग बिरँगे बादलों से दुनियावी समंदर में विलीन हो जाते हैं. पुन: पुन: नव यौवनकाल की सूरत में उभरने की ख़ातिर. अपने शैशवकाल में जीती पीढ़ियों की निर्विकार चेतना से गुज़र परिपक्व यौवन की खिलावट के प्रथम चरण तक समाहित हो जाते हैं. ये साहित्यिक स्तंभ हिंदुस्तानी ज़बाँ की संस्कृति, जीवित इंसानी अल्फ़ाज़ों का रचना संसार हैं. जिनमें जीवन धारा निरंतर प्रवाहित हो रही है. इसे आप चाहे हिंदुस्तानी ज़बाँ, उर्दु ए मुअल्ला, उर्दू, बाज़ारू ज़बाँ या खड़ी बोली या कि हिंदी कोई भी संज्ञा दें या राजनीतिक बाज़ीगरी करार दें. इन रंगीनिए अदा की कृतियों को रचने वाले कृतिकारों के तमाम रंग समूची दीर्घाओं और अंतराल के पार यथार्थ और कल्पना के धरातल पर कृति के रगों में घोले नई दिशा, नवीन विचार, नूतन कल्पनाएँ, मधुर स्वप्न की चित्राकृतियाँ भरे नए युग, नई कोंपलों की नसों में रंग रस रक्त का संचार कर रहे हैं.

ये उन रंगीन बादलों के टुकड़ों में आच्छादित महकती शाखेगुल हैं जिनकी ख़ुशबू से युवा प्रतिभा को जीवन दृष्टि मिलती है और विश्वजनीन विचार, युग निर्माण, रँगीनिए शबाब से मिलती है. जिससे क़ौम, मज़हब, जमात आदि इंसानी रिश्तों में गहरी निष्ठा पैदा होती है. इसकी रंगत से सृजन की बेलाएँ फ़ूलने लगती हैं. जिनसें अपार संभावनाओं के रंगरेज़ कृति सृजन की संकल्पनाओं से भरे हैं. ये ऐसे युवा हैं जो -

"रंज़े उल्फ़त में भी हँस हँस के सहर करते हैं
हम हैं वह फूल जो काँटों में बसर करते हैं."

यह तस्वीर युवा मन के यौवन का प्रणय गान है, क्रान्ति का उन्माद है, नए ख़्वाबों की शादाबी की बेबाक झलक है. यहाँ न संकोच, न शर्मिंदगी, न संशय की गुंजाइश है. कुछ है तो सिर्फ़ रंगशाला के मा'नवी गलीचों में उन्मत्त होकर असीम आकाश में कमसिन परवाज़ की. इन्हीं तमाम छोटे छोटे तसव्वुरों से रचकर बनी है अर्गला. 'अक्षत लेखनी' में जिसकी नाज़ुकी और ऊर्जा की तमाम विधियाँ आप देख सकते हैं. सुखद और किशोर मन की अल्हड़ता व रोमांच उनकी उनकी कृति के गढ़ने का सबब है. इसमें जो अंकुरण का बीज है उसका इतिहास कठोर ज़मीं पर पथराई वास्तविकता से भले ही फूटा है उसका अस्तित्व में होना इस संभावना, संतुलन और संचार का प्रतीक है कि अतीत के इतिहास के रंगों को अत्याधुनिक रंगरेज़ी चोंगा डाला गया है यही उसका जिस्म भी है और रूह भी. जिस्म है हस्तक्षेप - जहाँ तमाम सामाजिक - सांस्कृतिक संबंधों, मानवीय संकटों, राजनैतिक - आर्थिक विसंगतियों पर गहन विमर्श किया गया है और सामुदायिक चेतना की एकात्मीयता का लहू उन रगों में बहता है.

यह लहू उस विरासत की देन है जिसमें आदम और हव्वा के माज़ी से आदमी और औरत की दास्तान या रूह का फल्सफ़ा रचा. इस विरासत की छवियाँ बेसक़ीमती अपार बौद्धिक - संपदा से युक्त हैं. इन छवियों के रंग बिलकुल वैसे ही हैं मसलन शफ़क़ के रंग बिरँगे बादल जो इंसानी, मायावी दुनिया के समंदर में आहिस्ते आहिस्ते घुलते भी हैं और फिर, फिर वही रंग उस क्लांत जल राशियों से ताज़गी और नवीनता लिए पुन: शिखर के रँगीन बादलों की सुंदर छटा बनकर बिखर जाते हैं. यही हैं जीवन के विभिन्न रंग. जीवन की विभिन्न छवियाँ, अनुभूतियाँ, ऐंद्रिक बोध. जो अर्गला के यौवनारंभ से मस्ते अलमस्त, निशांत के ख़ुमार तक के रंग बिरँगे बादलों का सफ़र पुरबहार में जीते जीते तय करते हैं.

"रफ़्ता रफ़्ता ये हुआ कैफ़े तसव्वर का असर
दिल के आइने में तस्वीर उतर आई है."

अर्गला के इन रचनाकारों की कैफ़ियत यह है कि हिम आच्छादित शिखरों की भाँति इनकी ज़िंदगी का क़तरा क़तरा ज़माने की बेदिली से सख़्त नाराज़ भी है और क़ायनात की रंगत के हसीन लम्हों को जीने की ख़ातिर इनकी रंगरेजी शख़्सियत दिलचस्पी और नर्ममिजाज़ी से भरा भी है. इनकी पैमाईश का खज़ाना बेहद रोचक भी है और ज़ोखिम भरा भी. इन्हें जो मुक़ाम हासिल है उसमें इनका सिर्फ़ रचना संसार बसता है. वहाँ किसी को जाने की इजाज़त तब तक नहीं है जब तक वो शख़्स उस बेख़बर दुनियावी रहस्यों का अनुगामी न हो. अर्गला के रंग बिरँगे बादलों का सफ़र इन कृतिकारों के छिपे तहखानों में संजोकर रखी सुवासित माफ़िहा की अनुभूतियों को उन सारे लोगों तक पहुँचाना है. जो सभी की निग़ाहों से बची रह गयी हैं. शिखर से विरासत तक की यह रहगुज़र बादलों के रँगीन टुकड़ों के रूप में कोहेनूर हैं.

अर्गला की ओर से आख़िर में इतना ही कहना है - "आदमी पहचान लेते हैं कयाफ़ा देखकर."