इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
हमारा जीवन विंडबनाओं से परिपूर्ण है परंतु हर विडंबना, नकारात्मक नहीं होती। कुछ से हमें रचनात्मक उर्जा मिलती है, प्रसन्नता का अनुभव होता है। हाल में (25 मार्च 2012), हम सबने पाकिस्तान के डिप्टी अटार्नी जनरल मोहम्मद खुर्शीद खान को दिल्ली के गुरूद्वारा रकाबगंज में श्रद्धालुओं के जूते चमकाते देखा। उनके चित्र लगभग सभी अखबारों में प्रमुखता से छपे। इस तरह की “सेवा“ का गुरूद्वारों में महत्वपूर्ण स्थान है। “सेवा“ सामान्यतः पापों के प्रायश्चित स्वरूप की जाती है। मोहम्मद खुर्शीद ......
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‘‘ स्वतंत्रता एक ऐसी शक्ति है जो कभी किसी अन्य के अधिकारों को कोई क्शति नहीं पहुँचाती।’’
-1789 का फ्रांसीसी घोशणापत्र
‘‘कोई भी स्वतंत्र व्यक्ति अपने अधिकारों को ‘प्रकृति के कानून’ द्वारा प्रदत्त। निर्धारित होने का दावा करता है, न कि वह उसे किसी न्यायाधीश द्वारा दिए गए उपहार की तरह मानता है।’’
-थामस जैफरसन
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शायद वहाँ मान्यताएँ इतिहास से भी ज्यादा मज़बूत हैं। वे ऐसी मान्यताएँ हैं जिसने जीने और लड़ने की ललक पैदा की थी। ये सहज जिन्दगियों के लिए आसान रास्ते थे जिस पर चलकर वे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में उतर रहे थे। ऐसे अतीत में बीता हुआ इतिहास उनके लिए एक किस्सा है जिसे वे रोज दुहराते हैं और हर दुहराव के साथ यह थोड़ा बदल जाता है और हर बदलाव के साथ एक इतिहास टूट जाता है। आखिर ......
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