अर्गला

इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका

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काव्य पल्लव


अकबर महफूज़ आलम रिज़वी

इतने मदारी, इतने बंदर!
मस्त से बैठे कैम्प के अंदर
ठहाके लगाते, खैनी फाँकते
अपनी-अपनी कमाई का हिसाब लगाते
अपने-अपने मजमे की भीड़ के बारे में
बातें करते... ......
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अशोक प्रकाश

बच के रहना
प्यारे बच्चों !
वे मार डालते हैं...

नहीं समझते वे हमें-तुम्हें
इन्सान ......
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अपर्णा मनोज

याद रखना कि तुम्हारा कल
वही पिता है उतरता सूरज, लौटता मौसम, खुलती दिशाएँ
और एक पथराई ज़मीन जिस पर हल की नोक छोड़ गई है पसीने की लीक.

जिसकी डबडबाई आँखें और कुछ नहीं
गाँव की बहती नदी थी जो हर बार लौट आती थी ......
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अशोक कुमार पांडे

ईश्वर ने अर्थशास्त्रियों को इसलिए बनाया कि
मौसम विज्ञानियों की इज्जत बची  रहे
यह इससे बिल्कुल अलग बात है कि
ईश्वर को भक्तों की इज्जत बचाए रखने के लिए बनाया गया था
फिर अर्थशास्त्रियों ने इस अनर्थ की इज्जत बचाने के लिए गढे अर्थ. ......
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पवन करण

एक आदमी सीवर लाइन में
काम करने उतरता है
और वापस नहीं लौटता है
उसके पीछे दूसरा आदमी उतरता है
वह भी वापस नहीं लोैटता
तीसरा उतरता है ......
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महेश पुनेठा

उनके

दृढ़ इरादे

और कठिन परिश्रम ......
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मुकुल सरल

अगर तुम्हारे होंठों पर
बाक़ी है हंसी
फूलों में खुशबू
जुगनू में चमक
तो यक़ीन मानो
ये दुनिया ......
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