अर्गला

इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका

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गीत माधुर्य

राम आसरे गोयल

एहसास तो देते

कभी कुछ प्यार का अपने,
प्रिय एहसास तो देते
हृदय की धड़कनों को,
प्यार का विश्वास तो देते

चुभन हूँ कंटको की मैं, नहीं जो प्यार के काबिल
निठुर ऐसी जलन हूँ मैं, नहीं मनुहार के काबिल
तुम्हें पूजा है जीवन में, निहारा मन के दर्पन में
मगर तुमने कसक ही दी, अधर मृदुहास तो देते
कभी कुछ.........

किया अपराध क्या मैने, कि तुमसे प्रीत की मैने
खुद को हार कर ही तो, तुम्हें ही जीत दी मैने
न दो दोष दीपक को, हटाओ तम भरे शक को
तुम्हारे दिल में जो भी था, मुझे आभास तो देते
कभी कुछ.........

ताहर का जन्म लेकर भी, रहा फिर भी विमुख तट से
अछूती गागरी का क्या, नहीं संबंध पनघट से
सिसकते गान हैं मेरे, विलखते प्राशा हैं मेरे
विरह का तो दिया पतझाड़, मिलन मधुमास तो देते
कभी कुछ.........

जब याद तुम्हारी आती

पीड़ा सी आती मन में,
जब याद तुम्हारी आती
फिर गीत तुम्हारे प्रियवर,
धड़कन भी मेरी गाती

मैं तुम्हें चाँद में देखूँ
वह भी धोखा कर जाता
मैं कहाँ कहाँ खो जाऊँ
मन पीड़ा से भर आता

यह एक निराशा पल पल
नागिन सी डस डस जाती
पीड़ा सी उठती मन में
जब याद तुम्हारी आती

आहट सी होती मन में
मन दौड़ द्वार पर जाये
बस सूनापन ही सम्मुख
मुझसे आकर टकराये

शायद वे आते होंगे
दीयों से द्वार सजाती
पीड़ा सी उठती मन में
जब याद तुम्हारी आती

जब कभी निहारूँ दर्पन
लज्जा से झुक झुक जाऊँ
मैं खुद में तुमको पाकर
मन ही मन मुस्काऊँ

लेकिन जब आंजू काजल
नयनों में बदरी छाती
पीड़ा सी उठती मन में
जब याद तुम्हारी आती.

© 2009 Ram Asrey Goyal; Licensee Argalaa Magazine.

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