इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
मेरी कहानी जो तुम से अलग होती माँ
तो मैंने लिख दी होती
मेरी और तुम्हारी कहानी
अभी बदल नहीं सकती
कहानियाँ बदलने के लिए
करवट बदलनी पड़ती है ......
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कई दिनों तक देखता रहा
लाइब्रेरी की लिफ्ट में
खूब बोल्ड करके लिखे
एक लड़की का नाम
ऐन बगल में, बॉलपेन से ......
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तुमसे मैंने प्रेम किया
अज़ीब-ओ-गरीब अनुभव रहे
एक ख़ूबसूरत कविता की तरह
मैंने तुम्हें देखा
एक ख़ूबसूरत याद की तरह
सहेज कर तुम्हें रखा ......
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लहरों ने कहा जल से
अम्बर ने कहा थल से
हम फिर भी मिलेंगे
हम को आस तो दे देते
कल का है पता किसको ......
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दुख- भरे मन की कथाएँ!
हम विरह की वेदनाएँ!
शाख से बिछड़े 'सुमन' हैं
बाण-बींधे हिरन- मन हैं
आज रति- पति यूँ न तीखे ......
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औरत-
एक माँ, संस्कारों की धरती, पावन गंगा.
लोग इसे भूल जाते हैं!
एक माँ, काली बन जाती है
जब उसके बच्चे पर कुदृष्टि पड़ती है!
एक औरत, ......
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जिस समय
मैं उसे
अपना आईना बता रही थी
दरक रहा था वह
उसी वक़्त
टुकड़ों में बिखर जाने को बेताब सा ......
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मन के पीछे चलने वाले,
मन के साथ भटकना होगा.
हाँ, अभी देखी थी मन ने
रंग-बिरंगी-सी वह तितली
फूल-फूल पे भटक रही थी ......
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भीतर की औरत ने
पत्नी से पूछा
तुझे क्या मिला ?
पति का प्यार ?
ड्राइंग रूम की ......
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