इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
अनिल पु. कवीन्द्र: महिलाओं की स्मिता को लेकर 20 वीं शताब्दी से लेकर 21 वीं शताब्दी तक जो राजनीतिक भागीदारी को लेकर जो संघर्ष रहा है जो सामाजिक बराबरी की लड़ाई के मुद्दे को हासिल करने का जो मुद्दा है उसे आप किस रूप में देखती हैं ?
पूनम: सामाजिक बराबरी को लेकर जो संघर्षों का सवाल है, पूँजीवादी व्यवस्था ने विभिन्न देशों में यह दावा करते हुए कि महिलाओं को सामाजिक बराबरी कागजों ये तो उन्होंने देने ......
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अनिल पु. कवीन्द्र: 21सवीं सदी में महिला रचनाकारों का साहित्य कर्म और नई कविता में उनकी भूमिका कैसी है ?
रमोला रुथलाल: समस्त भारतीय वांग्मय में स्त्री लेखन का जो स्वरूप अध्यतन विमर्श और संघर्ष का विषय बना है वह स्त्री लेखिकाओं द्वारा एक विशिष्ट वर्ग का मात्र बौद्धिक संघर्ष बनकर उभरा है उसमें कहीं भी ज़मीन से जुड़ी महिला की वास्विकता मनोवृत्ति और भौतिकवादी समाज में उसकी पीड़ा का निर्वहन नहीं हो पा रहा है. नई कविता ......
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