इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
माँ
काश सब बेटियों की माएँ हों बिल्कुल तुम सी
बेटी की बला ले लें अपने ऊपर
उसके खौफ़, उसकी पाबन्दियाँ, उसके पहरे
सब बदल जाएँ ......
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एक सर्द हवा के झोंको वाली रात
निर्दयी बहती हुई ठण्डी हवा
अधिक दु:खदायी हो जाती है
जीवन के एकाकीपन में
मैं ख़ामोशी से सर्द हवाओं को ......
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ए कली तू खिलकर बिखरी क्यूँ है ?
तू सभी भँवरों से मिलती क्यूँ है ?
देखकर बात किया कर ज़माने से,
अपनी इस आग में जलती क्यूँ है ?
ए कली तू खिलकर... ......
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