अर्गला

इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका

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युवा प्रतिभा

अंशुल महाजन

कली

ए कली तू खिलकर बिखरी क्यूँ है ?
तू सभी भँवरों से मिलती क्यूँ है ?
देखकर बात किया कर ज़माने से,
अपनी इस आग में जलती क्यूँ है ?

ए कली तू खिलकर...

खिलती है किसके लिये?
सोच जरा तू
अजनबी है किसके लिये ?
सोच जरा तू,
अपनी ही आहट से डरती क्यूँ है ?
सोच जरा तू.

ए कली तू खिलकर...

यह दुनिया तो शैतान है,
तू क्यों समझती इसको भगवान है,
रंग देगी तुझे अपने ही रंग में,
कर देगी तुझे बदनाम इस जग में,
इन सच्चाइयों से तू,
अनजान क्यूँ है ?

ए कली तू खिलकर...

मचल क्यों जाती है तू,
किसी भी भँवरे को देखकर,
वो तेरा सिर्फ रसपान करेंगे,
तुझे तन्हा देखकर.

ए कली तू खिलकर...

भूल जा तू सारी दुनियादारी,
इसी में है तेरी समझदारी,
कोई नहीं है यहाँ तेरा,
तू भी अंशु की तरह हारी.

ए कली तू खिलकर...

ये कैसा देश महान

मेरा देश ये सबसे प्यारा है,
ये हिंदुस्ताँ हमारा है - 2
न जाने किसकी नज़र लगी,
रिश्तों में हुआ बँटवारा है.
ये हिंदुस्ताँ हमारा है

सोने की चिड़िया कहते थे,
मिल जुल के सब रहते थे,
बहती थी यहाँ दूध की नदियाँ,
पानी भी हुआ अब खारा है.
ये हिंदुस्ताँ हमारा है

नफ़रत की आँधी भरी हुई,
यहाँ मानवता भी सताई हुई,
प्रेमभाव मन से दूर हुआ,
घमण्ड करना सबका उसूल हुआ.
ये हिंदुस्ताँ हमारा है

जहाँ सीता जैसी माता हो,
ग्रंथों में ग्रंथ एक गीता हो,
अब माता भी बनी कुमाता है,
यहाँ अपना ही मार भगाता है.
ये हिंदुस्ताँ हमारा है

एकता की जहाँ मिशाल बनी,
हर बात जहाँ की कमाल बनी,
अब घुस आते दहशतगर्द यहाँ,
चोरों का वारा न्यारा है.

ये हिंदुस्ताँ हमारा है
मेरा देश ये प्यारा है
ये हिंदुस्ताँ हमारा है.

© 2009 Anshul Mahajan; Licensee Argalaa Magazine.

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