इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
सुख के साथी तुम छूट गये
यदि दु:ख हो पास चले आना
युग-युग से हृदय तुम्हारा है
यदि हो विश्वास चले आना
दु:ख के गहरे सागर में ही ......
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पूरी क़ायनात का सरापा गीत ही है. कोयल की कूक, झरनों का गिरता पानी, नदी की बलखाती लहरें, मृगच्छौनों की छलाँगें, समंदर की लहरों की टकराहट जिसे देखकर एवं सुनकर मन को अप्रतिम सुख का एहसास होता है. जो दरसल गीत संगीत की बुनियाद है. गौरतलब है कि गीत ' पेन किलर ' है. तभी खेतों में सँघर्ष करते मज़दूर गीत गा गाकर अपने काम को बड़ी ही सहजता से पूरी कर लेते है. धान रोपती औरतें ' धान रोपनी ......
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