इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
हिमालय भारत अर्थात हिंदोस्तान के भौतिक और मनोलोकीय अस्तित्व की एक अटूट कड़ी है. भारत के अस्तित्व में इतिहास और मिथकीय लीलाओं के अपूर्व संचरण इस तरह प्रवाहित हैं कि वे काल की परिसीमाओं का अक्सर संस्क्रमण कर जाते हैं. वे एक साथ प्रागैतिहासिक अतीत भी हैं तथा सांस्कृतिक प्रतीतियों के रूप में अद्यतन से लगने वाले व्यावहारिक उपकरण भी हैं जिनका उपयोग अनेक रूपों में सभी भारतीय करते हैं. संसार का यह सबसे नया पर्वत मण्डल अपने ढंग का ......
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कलकत्ते की घटनाओं को अग़र सांप्रदायीकरण भटका देता है.परस्तावित विशेषार्थिक क्षेत्र (सेज़) से किसानों का विस्थापन, नव-उदारवाद का आक्रमण एवं पुनर-उपनिवेशीकरण के ज्वलंत मुद्दे को दिग्भ्रमित एवं दिशाहीन कर दिया है. संगठित वामपंथ और दक्षिणपंथ, विभिन्न प्रकार के कुंठाग्रस्त व हासिये के सांप्रदायिक संगठनों के दबाव में आ रहे हैं. उपरोक्त परिघटना को सन 2002 की गुजरात का लोमहर्षक सांप्रदायिक नरसंहार, रामजन्म भूमि एवं रामसेतु के संदर्भ में देखना होगा. जिसमें संघ परिवार के नेतृत्व वाली हिन्दू फ़ासीवादी ताक़तों ने ......
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मनोविश्लेषणवाद मानव मन की आंतरिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करनेवाली आधुनिक अध्ययन पद्धति है. जिस तरह प्राकृतिक विज्ञान वाह्य प्रकृति के नियमों की खोज कर उसकी सम्पूर्ण संरचना का पता लगाते हैं. उसी तरह मनोविज्ञान मनुष्य की आंतरिक प्रकृति की संरचना के नियमों का संधान है. मनोविश्लेषणवाद मष्तिस्क के चेतन उपचेतन और अचेतन तीन भाग कर अचेतन को विशेष महत्व प्रदान करता है. यही अचेतन हमारे व्यक्तित्व हमारे सारे कार्य व्यापारों हमारे सारे नैतिक आचारों का निर्माता और नियन्ता है. सी. ......
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साहित्य का मुख्य सरोकार समाज से है. सामाजिक, सांस्कृतिक समस्यायों, द्वंद्वों और संघर्षों की अभिव्यक्ति इसमें होती रही है. प्राचीनकाल के सगुण, निर्गुण, द्वैत, अद्वैत आदि से लेकर छायावाद, प्रगतिवाद, मार्क्सवाद, आदि सभी वाद विवाद साहित्य में रूपायित हो उसे गति देते रहे. लेकिन ये वाद भी समाज के सभी कोनों को नहीं छू पाये थे. वामपंथ ने तो वर्ग की बात की तो लेकिन भारतीय संदर्भ में जाति उनके दायरे से बाहर ही रह गयी. स्त्रियों की आधी दुनिया ......
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कोइ भी रचनाकार जब सृजन कर्म करता है. तो उसके सामने रचना प्रक्रिया के विविध उपकरण होते हैं उन उपकरणों में पात्रों के नामों का विशेष महत्व होता है. श्रेष्ठ रचनाकार वस्तुस्थिति के आधार पर पात्रों के नामों का चयन एवं प्रयोग करता है. प्रेमचंद के पात्रों को भी उनके नाम सजीव कर देते है. समाज, अर्थव्यवस्था एवं परिवेशगत विविधताओं के आधार पर प्रेमचंद के पात्रों के नाम भी भिन्नता प्राप्त करते हैं.
प्रेमचंद अपने पात्रों का नामकरण ......
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