अर्गला

इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका

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शिखर


केदारनाथ सिंह

बाघ का लिखना कब शुरू हुआ ठीक-ठीक याद नहीं. याद है केवल इतना कि नवें दशक के शुरू में कभी हंगरी भाषा के कवि यानोश पिलिंस्की की एक कविता पढ़ी थी. और उस कविता में अभिव्यक्ति की जो एक नयी संभावना दिखी थी, उसने मेरे मन में पंचतंत्र को फ़िर से पढ़ने की इच्छा पैदा कर दी थी. उस कविता में जो एक पशुलोक था - बल्कि एक भोली-भाली पशुगाथा - मुझे लगा कि पंचतंत्र में उसका एक बहुत पुराना ......
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गंगा प्रसाद विमल

बाहर जो खुलापन है
वह वास्तव में
शून्य का मंडोपा है
और विस्तार के आवरण के पार
देखना असंभव है ......
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सीमा शफ़क़

मैं जब भी नज़्म लिखने के लिए काग़ज़ उठाती हूँ
सोचती हूँ कि गीले वरक़ पे लिखूँ कैसे?
न कल ही थी न मेरी आज ही निस्बत जिससे
मैं साथ उस ज़माने के भला दिखूँ कैसे?

मैं कैसे मान लूँ कि दुनिया बहुत छोटी है ......
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बोधिसत्व

(26 अक्टूबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों के संदर्भ में)

मैं इसलिए बचा हूँ
क्योंकि मैं घर में बैठा हूँ.

यदि मैं भी वहाँ होता गेटवे या ताज पर तो ......
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वीणा विज 'उदित'

नित्य होता शब्दों का नृत्य
ख़बरें उड़तीं, चर्चे होते
मीडिया बेलगाम जपता
आदम हव्वा के किस्से
भौतिकता साँस लेती
संवेदना लुप्त होती जाती ......
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