अर्गला

इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका

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युवा प्रतिभा


संध्या नवोदिता

मेरे पास चिड़िया है
चिड़िया के पास हैं पंख
पंखों के पास है परवाज़
और परवाज़ के पास है
पूरा आसमान ......
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अभिमन्यु

मैंने सदा ये गवारा किया
कि जो मैंने किया क्यूँ किया क्यूँ करता आ रहा

मगर मुश्किल था बूझना खुद के क़रतब
उतने ही खुशगवार
जितना कि यह ......
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तरनदीप कौर

अपने ही शहर में अज़नबी हैं हम
भीड़ में भी चलते अकेले हैं हम
रास्तों पर तन्हाई का आलम रहता है,
आदमी ख़ुद आदमी से ज़ुदा रहता है
जाने-पहचाने चेहरे भी अब अनजान दिखाई पड़ते हैं
यह चौराहे जो अपने थे, पराए से लगते हैं ......
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रवि शंकर

एक आईने सी झलक आती है ज़िंदगी
आज मेरी सूरत दिखी और पल अगले ग़ायब हो गई
फ़िर कोई और देखता है उसमें शक्ल अपनी
वो भी रही पल भर और ग़ायब हो गई

कितनी सूरतें सँभालता है ये आईना ......
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रवि प्रकाश

आज मैं बड़े गर्व से पुराने पड़े जूते
ठीक करवा रहा हूँ.
वो इराकी जूते,
जोकि तपती रेत में झुलस गये,
जिस देश की रेत में बारूद मिला दिया गया.
वो वियतनामी जूते, ......
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विवेक कुमार अगरवाल

पथ पर चलता, चलता जाता,
चलते-चलते थक सा जाता,
थक कर फिर कुछ बैठ गया यूँ,
समय को रख कर भूल गया ज्यों.
चला सागर सब मन्थर गति से,
मैं न निकला अपनी रति से, ......
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अभिषेक आनंद

सब कहते है.
ऐसी हो माँ, तुम, वैसी हो माँ.
कोई माँ से कभी ये भी तो पूछे,
कि "कैसी हो माँ?" ......
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आकांक्षा गोयल

हम करें शिकवा ग़ैरों से क्या
यह बेगाने हुए अपनों की कहानी है
पाँव तले जो फूल दब गया
उसके टूटे हुए पत्तों की कहानी है.

यह कहानी है उस धूप की जो निकलती है रौशनी के लिये, सर्दियों में गर्माहट देने के लिये, एक अदद प्यार के लिये, उसकी खूबसूरती के लिये. यह कहानी है सर्द पत्तों की, जिनकी आवाज़ कभी संगीत लगती है, तो कभी दिल की धड़कन जैसी और कभी दर्द भरी ......
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माने मक्रत्च्यान

मैंने बचपन से ही परीकथा वाले 'भारत' का सपना देखा था. मेरे घर में भारत की संस्कृति, भारत का दर्शनशास्त्र सभी सीखते हैं. मैंने पुरूषोत्तम श्रीराम और सीता की कहानी बहुत बार सुनी है. महागुरू कृष्ण और गौतम बुद्ध के बारे में भी मैंने काफ़ी कुछ जानकारी हासिल की है. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई और महात्मा गाँधी के संघर्षपूर्ण जीवन के बारे में मैंने दिलचस्पी से सिलसिलेवार पढ़ा है. और आज इस आज़ाद हिन्दुस्तान को देखकर बेहद खुश हूँ. ......
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प्रणव कुमार

फूल सजा दूँगा तेरे क़दमों के नीचे,
पर वो फूल मेरी माँ के आँचल का हो,
क्यूँकि प्यार करना तो उसने ही सिखाया,
तो फिर माँ से ज़्यादा इन्तज़ार तेरा क्यूँ हो?

ये मौसम बदल जाता है तेरा साथ पाकर, ......
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