अर्गला

इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका

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विरासत


जोतिमय बाग

यह बात उन दिनों की है जब मैं एम. फिल. के दौरान अपना तथ्य संग्रह करने में लगा था. गुरुवर, मैनेजर पांडेय से सलाह-मशवरा कर मैंने यह तय किया कि विष्णु प्रभाकर जी से मिला जाये. संपूर्ण हिंदी जगत में एक विष्णु प्रभाकर जी ने ही शरतचंद्र पर वृहद अध्ययन किया है. अत: उनसे मिले बगैर मेरा इस विषय पर काम करना असंभव सा लग रहा था. इस बीच गुरुवर प्रो. मैनेजर पांडेय लगातार दूरभाष से विष्णु जी से संपर्क ......
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विष्णु प्रभाकर

जोतिमय बाग: विष्णु जी, नारी-मुक्ति आंदोलन के संदर्भ में आप आज की नारी और शरत बाबू की नारी को कैसे देखते हैं?

विष्णु प्रभाकर: देखो आज की नारी जिस धरती पर खड़ी है, उसको शरतचंद्र ने ही ठोस रूपाकार प्रदान किया है. शरतचंद्र ने वह भूमिका तैयार कर दी थी जिस पर आज नारी-मुक्ति आंदोलन कर आगे बढ़ रही है.

जोतिमय बाग: क्या आप कुछ उदाहरण देकर अपनी बात की पुष्टि करना चाहेंगे? ......
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