इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
बजती है देह बाँसुरी
साँसों के स्वर के संग
अतल-वितल तक गूँजता है
जिसका अनहद नाद
स्वार्थ और द्वेष से परे
होता है जिसमें ......
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अन्तर्मन की दहलीज पर
मैने देखा एक पक्षी का
सुन्दर सा घोंसला
जिसे देख कर रोज़ बढ़ता
मेरा हौसला
......
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स्मृति बहुत ही गरीब घर की परंतु सुशील लड़की थी. वह दिल्ली के एक कार्यालय में क्लर्क के पद पर कार्यरत थी. उसका छोटा सा परिवार था, दो बच्चे राहुल और कीर्ति और उसकी बूढ़ी माँ. उसका पति से तलाक़ हो चुका था जिसके कारण वह अपनी बूढ़ी माँ के साथ रहती थी. उसका तथा घर का खर्चा बड़ी कठिनाई से चल पाता था. बच्चों का नाश्ता बनाकर उन्हें स्कूल के लिए तैयार करना और स्कूल भेजकर सारे काम निपटा ......
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कविता लिखना कुछ वैसा ही है जैसे प्रेम करना. दोनों के लिए समर्पण की जरूरत होती है. इसके बिना दोनों की बुनियाद मजबूत नहीं हो सकती है. मेरे लिये 'कविता' और 'प्रेम' एक दूसरे के पूरक हैं. मैंने अभी तक जितनी भी कविताएँ लिखी हैं उसका स्रोत मेर.'प्रेम' रहा है.'प्रेम' व्यक्ति का बुनियादी मौलिक अधिकार है. जब से मैंने जीवन के इस रहस्य को समझा है तभी से मेरे भीतर वास्तविक रूप से सृजनात्मक तनाव का जन्म हुआ है. बिना ......
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कहने को मैं विश्व की शक्ति, पर आज डरी सहमी हूँ
मुझ में मिले भीष्म, मंगल और भगत, मैं तुम्हारे देश की मिट्टी हूँ
लहू पीने की आदत मुझको, मुझे शौक समर का खूब
पर यह कैसा समर हुआ, जिससे विचलित हो मैं आज उठी
......
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जिन्दगी के कशमकश भरे पन्नों में
जब भी उतर के देखा
नजर आते हैं
सिर्फ़ काले काले अक्षर
कोशिश करता हूँ कि
काले काले अक्षरों के बीच ......
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