इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
”कभी सोचा है आपने, कि ज़िन्दगी भर पैसा कमाया भी तो बस ग़लत इस्तेमाल के लिये. इस पैसे से आपने अपनों का अनदर किया है, अपने अहं की तुश्टि की है और अकेलापन ख़रीदा है!. . आपके आख़िरी वक़्त में न आपका बेटा आपके पास खड़ा होगा और न ही दोनों बेटियाँ! “. . हाँफने लगी थी मीरा. इकतालीस साल से अपने पति के व्यवहार से तंग आ चुकी मीरा ने आज अपने दिल की बात को पहली बार अभिव्यक्ति ......
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वैसे तो दक्शिण अफ्रीका में बहुत सी सड़कें गालियाँ और पगडंडियाँ हैं लेकिन कोई भी मेरी तरह अफ्रीका रोड नहीं है.
काले लोगों की हर बस्ती में, वह कहीं भी हो, उसकी अपनी अफ्रीका रोड है. आम तौर पर हमें टार रोड (कोलानर रोड) के नम से जान जाता है. वो लोग जो बस्तियाँ बनते हैं, कानून बनते हैं. वो ऎसी सड़क बनने को भी सोचते हैं ताकि सेन और पुलिस की गाड़ियाँ आसानी से आ जा सकें. ......
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मकर संक्रांति के दिन अहमदाबाद के मणिनगर इलाके में कई सारी पतंगे आकाश में बहुत ऊपर तक उड़ रही थी. आकाश रंगबिरंगी पतंगों से भरा पड़ा था जो कि कई बार एक दूसरे में उलझते-उलझते बच जाती तो कभी एक दम से बल खा कर डगमगा जाती. हर पतंग उड़ाने वाला एक दूसरे की पतंग काटने पर लगा था. आकाश में मानो कोई मेला लगा हो. सबकी नजर एक बहुत ऊँचाई पर उड़ने वाली एक सुन्दर सी आसमानी रंग की पतंग पर थी कि उसे काटे और फिर ......
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Coming Soon.
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प्रधान जी खफा-खफा से घूम रहे थे गाँव की गलियों में. तोले-पुरवों में जाकर हाथ जोडकर वोट तो माँग रहे थे और गाँववाले हामी भी भर रहे थे लेकिन उनको यकीन नहीं हो रहा था की लोग उनके पक्श में मतदान करेंगे. दुहाई तो वो लगातार दे रहे थे पिछले पांच साल में किए गए कामों का, लेकिन उनके भीतर बैठा डर उनका पीछा नहीं छोड़ रहा था. सच तो यह है कि उनहोंने पांच साल में कोई कायदे का ......
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उसने कहा था कान को दाँतों से काट, चैती ने कान को दाँतों से भींचकर पकड़ा था. कान के भीतर से एक अजब-सी दुर्गंध आ रही थी, बकरे की दुर्गंध की तरह. उसको उबकाइयाँ आने लगी, मगर उसने अपने आप को संभाल लिया था. इस तरह घृणित भाव से खाते हुए उसने पहले कभी देखा न था. कितना लोभी और स्वार्थी आदमी है वह, उसने सोचा था. भले ही पहले से कितने लोगों को उसने देखा था, नवघन बीच-बीच में लोभी की तरह व्यवहार ......
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