इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
वैसे तो दक्शिण अफ्रीका में बहुत सी सड़कें गालियाँ और पगडंडियाँ हैं लेकिन कोई भी मेरी तरह अफ्रीका रोड नहीं है.
काले लोगों की हर बस्ती में, वह कहीं भी हो, उसकी अपनी अफ्रीका रोड है. आम तौर पर हमें टार रोड (कोलानर रोड) के नम से जान जाता है. वो लोग जो बस्तियाँ बनते हैं, कानून बनते हैं. वो ऎसी सड़क बनने को भी सोचते हैं ताकि सेन और पुलिस की गाड़ियाँ आसानी से आ जा सकें.
साधारणतः बस्ती में जाने और निकलने वाली एक ही सड़क होती है. लेकिन काले लोग कहते हैं कि वे मूर्ख नहीं हैं. वो शासकों के असली मकसद को जानते हैं.
मैं लंबी काली और मुठेली के समतल टुकड़े की तरह खूबसूरत हूँ. कुछ लोग कहते हैं कि मेरी खूबसूरती उस दुराग्रही सफ़ेद लकीर द्वारा बिगाड़ दी गयी है क्यूंकि यह मेरी विशालता को काट देती है. लेकिन इस जगह के कानून की तरह लकीर अवज्ञापूर्वक पश्चिम में सूर्य के शयनकक्श से पूर्व की तरफ सर्पिल गति से आगे बढ़ती है. जहाँ से मेरी शुरुआत होती है-पूर्व में माफाला पहाड़ी है – जहाँ सभी महत्वपूर्ण कार्यालय हैं-बांटू के चैंबर और पुलिस स्टेशन.
मैं अफ्रीका रोड, ने सभी आती-जाती चीजों का बोझ और दबाव चुपचाप झेला है और झेलती रहती हूँ – वह चाहे आदमियों का हो, जानवरों का हो या मशीनों का हो. मैं दमन करने वाले सैनिक काफिलों और नगर प्रमुख की शोभायात्रा के आगे चने वाली पुलिस के बैंड बाजे के तले कराहती रही हूँ. मैं शादियों की और बच्चों के जन्म की भी साक्शी हूँ और पुलिस की गाडी तथा एम्बुलेंस की सर्राटा भर्ती आवाज़ के साथ ही दुःख से रोते, दफनाने के लिए जाते हुए लोगों के विलाप को भी सुनती हूँ.
मैं लोगों के अकेलेपन का रोना भी सुनती हूँ. और मैं आनंदविभोर लोगों की गहमागहमी, हो-हल्ला से भी परिचित हूँ, जिनकी मौजमस्ती एवं हँसी से घेट्टो मर उठता है.
मैं एक शक्तिशाली सड़क हूँ. सभी धूलभरी तथा कटी-फटी गलियाँ और सड़कें हाँफते-धड़कते लोगों की भीड़-भाड़ मेरे शरीर पर एक बिंदु पर आकार मिल जाती है. और मैं सभी को वर्शों से और वर्शों तक जीवन और मृत्यु सभी में अपनी हृश्ट-पुश्ट गोद में समेटती रहूँगी.
एक समय था जब मैं झुण्ड के झुण्ड उबलते लोगों के लिए एक कदः थी. क्रुद्ध भीड़ की हिंसा की लपटों ने घरों और लोगों के व्यापारों को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया था. लोगों का कहना है कि इन लोगों ने शासन का सहयोग किया था. पुलिसकर्मी और संदेहास्पद मुखबिर तथा दलालों पर भीशण आक्रमण किया गया था. कुछ की तो हत्या कर दी गयी थी. फिर भी भय और उन्माद के बीच कवायद करते और हो हल्लता करते जनसाधारण के चेहरों पर मैं अफ्रीका रोड सचमुच का उल्लास देख सकती थी. सबके बावजूद यह स्वागत करने योग्य विसंगति थी. आनंद और क्रोध कदम से कदम मिला कर साथ-साथ चल रहे थे.
उस दिन मार्च करने वालों में तरह-तरह के रंगत वाले, कुछ चॉकलेटी भूरे, चमकते आबनूस तथा हलके खुबानी चमड़ी वाले कार्यकर्ता थे जो सड़क पर आये थे.
वह अश्वेत लोगों के प्रतिरोध के बहुत से दिनों में एक दिन था. लोग अपनी ही बवंडरी भावनाओं में झूम रहे थे. जोर लगा रहे थे. कभी-कभी भीड़ के प्रमुख लोग अपन बाढ-द्वार खोल देते थे. जिसमें सैकड़ों नए विरोध करने वाले अपने बेढब हथियारों के साथ समा जाते थे वे हथियार होते थे, डंडे, पत्थर, कुल्हाडियाँ, घर में बनाए गए तलवार, चाकू और कूड़ों के डब्बों के ढक्कन. चार सौ लोग म्पान्जा स्ट्रीट से, पांचसौ मातान्बो से और अध्पिए दर्जन भर सिस्टर सोंटी के शेबीन से आये थे. शास्त्रों को लाने का आग्रह पियक्कड़ों तक के लिए चुम्बकीय सिपाही ही होता है – चाहे वह पिए हुए हो या संयमी. जो बात ज्यादा महतवपूर्ण थी वह थी संख्या.
गोबा और जामानी स्ट्रीट के बीच जहाँ अभिमानी और इन सब गतिविधियों से उदासीन अभिजात वर्ग के लोगों के घर हैं, वहाँ से केवल तीन युवा उमड़ती भीड़ में शामिल हुए. खुकु के झुग्गी-झोपडी में रहने वाले स्वेच्छा से बहुत वस्तुतः सैकड़ों की संख्या में शामिल हुए. जुलूस गति पकड़ता गया. स्त्री-पुरुश, बच्चे तथा आग खाने का अभिनय करने वाले टी-शर्ट पहने कॉमरेड बिन यूनीफॉर्म के या पारंपरिक शास्त्रार्थ लिए हुए सिपाही सभी इससे बाखबर कि माफाला हिल पर मौत उमकी प्रतीक्शा कर रही है, चल पड़े.
और प्रतिरोध के रूप में वे गाते रहे.
गाने जो हिल की सुरक्शा में लगे सशस्त्र लोगों को ललकारते तथा उनका मखौल उड़ाते थे, वह हिल लिसे बहुत से अश्वेत लोग बंधुआ और अपमान ई अनगिनत कड़ी के रूप में देखते थे- लोग ऐसा कहते थे. सरकारी संस्थाओं में काम करने वाले ऊँचे-ऊँचे कंटीले त्रों से घिरीई हिल की दीवारों के अंदर सुरक्शा पाने वाले लोगों को वे कठपुतली बिकाऊ और पिम्पी* कहा करते थे.
पागल भीड़ जब विद्रोह के आवेश में हिल के साथ संघर्श के लिए झूमती आगे बढ़ती थी, मैं अफ्रीका रोड भीड़ का वाहन करती थी, जहाँ अस्त्र-शस्त्र से लैस सैकड़ों सिपाहियों की सेन और पुलिसकर्मियों द्वारा स्थानीय ग्रीन्बीन कानून के तहत निगरानी रखी जाती थी. उनके स्वचालित हथियार की सुनहरी और नरंगी किरणें साफ़ आकाश में फफोलों की तरह दिखती थीं. गान चरम सीमा तक पहुँच गया जब झण्डा लिए गाते हुए युद्धरत युवक प्रतीक्शा करती मृत्यु की मशीन की तरफ बढ़ती भीड़ का नेतृत्व करने लगे. गीतों में आसन्न युद्ध और प्रतिशोध तथा लोगों में जो स्वतन्त्रता की भूख थी उसकी भावना भरी थी. गान जो बोथा* से आग्रह करते थे कि वह नेलशन मंडेला तथा अन्य सभी राजनीतिक कैदियों को मुक्त कर दे. युद्ध संबंधी गीतों में सवाल-जवाब थे जो संकेत करते थे कि एके-४७, स्कार्पियन, औतोमैटिक पिस्तौल और बाजुका रॉकेट लॉन्चर की. आसन्न उपलब्धि क्या है. उसके बाद बिजली की भाँती होने वाला तोई-तोई युद्ध-नृत्य होता था, जो लगता था कि मार्च करने वालों की आत्मा में प्रविश्ट हो गया है. मुझे लगता था कि जनसाधारण मृत्यु या विजय, जो भी पहले आये, उसे वरण करने को तैयार है.
तोई-तोई एक पारंपरिक नृत्य है जिससे लोग डरते और घृणा करते या प्यार और आदर करते हैं. यह इस बात पर निर्भर करता है कि कोई व्यक्ति राजनीति के किस ओर खड़ा है – वह जनसाधारण के साथ है या शासकों के साथ.
यह सचमुच एक विस्मयकारी प्रेरणादायक दृश्य होता था-हजारों क्रुद्ध और चिंतित पैर दिलेरी और निर्भीकता से बढ़े जा रहे हैं. ऊपर और नीचे, आगे और पीछे उसके बाद आगे और आगे उत्तेजनना से भरे लोग झाग और पसीना मेरे काले बदन पर गिराते बढ़ते जा रहे थे.
और मैंने, अफ्रीका रोड ने, देखा कि खाकी पोशाक में स्कूली बच्चे हिल पर जबरन कानून लागू करने वालों पर अपनी काठ की बंदूकें तानते हैं. गोलियाँ गर्म स्वासों और शोरगुल की होती हैं जो हवा में प्रतिध्वनित होती रहती है. ”हम लोग उन्हें उनके बच्चों के साथ मार डालेंगे. ” खाकी वर्दी वाले योद्धाओं ने गुंजार किया. जैसे-जैसे भीड़ करीब होई गयी, हिल पर मौत उनकी प्रतीक्शा कर रही थी. यह अन्तिम संघर्श होगा; सात हज़ार से भी अधिक लोग दो-दो हाथ करने के लिए आगे बढ़ रहे थे. स्वतन्त्रता के लिए अग्रसर हो रहे थे, कम से कम उनहोंने ऐसा ही कहा.
आप उनकी युवा आँखों में देख सकते थे; छाती पर परिचित धमाके के लिए हड्डियों का चटखन सुन सकते हो और फेफड़ों का चीर जाना, क्योंकि कानून को सख्ती से लागू कारवाने के लिए गोली चलाने वाले अपनी घुसपैठ गहरी अंधेरी असहमति के रास्ते करते हैं.
इसे आप बच्चों की लहराती हुई बाहों में देख सकते हैं-बच्चे हमेशा गोली के निशाने में रहते हैं-वे फटे-चीथड़े कपड़ों या स्कूल यूनीफार्म में रहते हैं, टी-शर्ट या नंगी छाती वाले, अमिट लगन के कारण उनकी मुट्ठी बंधी रहती है. उनकी नियति हो चुकी है कि वे कभी भी प्राकृतिक बचपन की मधुरता का अनुभव नहीं कर सकें. आप उन्हें देख सकते हैं.
और मैं, अफ्रीका रोड, ने उन्हें उठने और सभी बेरुखी हवाओं के विरुद्ध अहोत्साहित होकर दौड़ते हुए देखा है, वे गिरते हैं लेकिन प्रतिशोध में नए बनकर उठ खड़े होते हैं-पृथ्वी को न जीवन प्रदान करते हैं, वह नया जीवन जो पुनर्जीवित हो सकता है – या जैसा मैंने लंबे-लंबे मार्चों के समय जनकवियों से सुन है.
विदे और वाने रोड के बीच की एक छोटी सी मामूली गली से एक पुरानी कार सनसनती हुई निकली. सजा-धजा अघाया ड्राइवर बंटू काउंसिलर एक उद्योगपति गाफोला हिल पर अपने शरणालय की ओर जा रहा था. वह एकाएक मुझ पर मुड़ा. जब महंगी आयातित कार उछली, उससे तेज आवाज़ हुई और पहिये से धुआँ निकलने लगा. लोग-बाग सुरक्शा के लिए दुबक गए और उसने मुझे जला दिया.
कोई चिल्लाया, “पिम्पी!. ”
मानव टेलीग्राफ तार ने घृणास्पद शब्द का प्रसार कर उसे नीले आकाश तक प्रतिध्वनित किया. अगली पंक्ति के नेताओं को सन्देश मिल गया. रुककर उनहोंने सैनिकों को अपन समर्थन दिया, जिन्होंने सहज रूप से आक्रमण के अंदेशे में अपनी बंदूकें उठा लीं.
लैमिनेट की हुई कार की खिड़की फेंके हुए पत्थरों की मार से टूट गयी. कुछ युवा उस पर कूद पड़े और सामने का विंड स्क्रीन तोड़ डाला. अंदर बैठा आदमी भय से आक्रान्त मुँह खोले बैठा रहा. अकाल मृत्यु के डर से वह अचल हो गया था.
और मैं अफ्रीका रोड, घातक परिणाम जानती हुई यह देखती रही. मैं बहुत बार ऎसी घटनओं की साक्शी रही हूँ.
“पिम्पी!. ”
दहला देने वाला अभ्यारोपण एक बार फिर अन्तिम बार गूंज उठा.
एक बड़े पत्थर से ड्राइवर की खोपड़ी कुचल डाली गयी. उसके मुँह, नाक और कानों से रक्त बह निकला. लोगों ने उसे खींचकर बाहर निकाल दिया. उसके सिर का पिछला हिस्सा मेरे ऊपर फूट पड़ा. मैंने उसका खून उसी तरह पी लिया जैसे मैं उसके पहले कई बार पी चुकी थी और आने वाले समय में बहुत बार पियूंगी.
यह नियम है और विरासत है.
कोई एक टायर लाया. किसी ने पेट्रोल का एक कनस्तर उठाया. किसी ने अफ्रीका रोड पर एक माचिस जला दी.
- मूल लेखक-डान मातेरा, अनुवादक-उर्मिला जैन
© 2012 Urmila Jain; Licensee Argalaa Magazine.
This is an Open Access article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution License, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original work is properly cited.