अर्गला

इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका

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गीत माधुर्य


आलोक रंजन झा

बस अबके दफा नहीं रोया हूँ मैं,
पर रात भर नहीं सोया हूँ मैं.

जब गुज़रो इधर से,दे देना एक दस्तक,
एक अरसे से ख्वाबों में खोया हूँ मै. ......
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