इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका
बहुत देर से रेलवे रिज़र्वेशन की लम्बी लाइन में खड़े रहने के बाद अब वह खिड़की के काफी क़रीब पहंुच गया था। उसके आगे सिर्फ चार पाँच लोग ही रह गये थे। हब्स का माहौल था और वह पसीने से तरबतर था। उसने बेख्याली में अपने दोनों हाथ सर पर फेरे तो वह फिसल कर उसकी गुद्दी पर जा टिके तब उसे हज़ारवीं बार ख़्याल आया कि अब वह फारिग़ उल बाल हो चुका है। उसने आदत के मुताबिक अपनी ......
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जल्द आ रहा है. कृपया प्रतीक्षा करें.
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जल्द आ रहा है. कृपया प्रतीक्षा करें.
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