अर्गला

इक्कीसवीं सदी की जनसंवेदना एवं हिन्दी साहित्य की पत्रिका

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अर्गला पत्रिका

स्तंभों के बारे में

शिखर

शिखर के अंतर्गत हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक योगदान देने वाले उन साहित्यकारों को सम्मिलित किया गया है जिन्होंने अपनी सारी ज़िंदगी इस कोशिश में गुज़ारी कि हिंदी को तमाम वर्चस्वशाली ताक़तों से कैसे बचाया जा सकता है. इन अग्रदूतों ने नई पीढ़ी की ख़ातिर अपनी उम्र के हर क्षण में अनुभवों का संचय अपनी रचनात्मक कृतियों में संचित किया है, ताकि उम्र के आख़िरी मुहाने तक जाते जाते युवा पीढ़ी उनके इन संस्कारों को अपने भीतर उतारे. यह शिखर ऐसे यादगार रचनाकारों की तमाम दुश्वारियों और लगन की जीवित छवि अंकित करता है. एक आज़ाद हिंदुस्तान की स्वप्न कथा को इनकी कृतियों में बख़ूबी जीते हुए देखा जा सकता है. इसके साथ ही युग की तमाम जटिलताएँ, द्वंद्व, पशोपेश को भी ये रचनाकार बेहद संज़ीदगी से आने वाली पीढ़ी के लिए सबक और प्रेरणा के रूप में पेश करते हैं.

इस स्तंभ के अंतर्गत हमारा प्रयास है कि ये रचनाकार हमेशा हमेशा के लिए हमसे यूँ ही जुड़े रहें और युवा पीढ़ी को हिन्दी ज़बाँ में जीने की ख़ातिर उत्साहित करते रहें.

अनुसृजन

अनुसृजन ही एक ऐसा माध्यम है जिसके ज़रिए विश्व की तमाम संस्कृतियों से कोई भी वतन संज़ीदा ताल्लुक़ात बनाए रख सकने में समर्थ है. इसमें हर समाज अपनी सुविधानुसार अपनी ज़बाँ में भाषा के ज़रिए संबंध साधता है. अनुसृजन से विश्व संस्कृति की तमाम जिज्ञासाओं, ज्ञानार्जन के साथ साथ भौगोलिक सीमाओं का अतिक्रमण भी बिना किसी बँटवारे के सहज करने में सक्षम है. दूसरे शब्दों में कहें तो अनुसृजन के द्वारा आवाम विश्व संस्कृति की एकनिष्ठता का प्रारूप निर्धारित करती है. यह तमाम राष्ट्रों के बीच खींची गई दीवारों को ध्वस्त करने की मंशा से भरा है. जहाँ तमाम विविधताएँ विश्वजनीन एकता में बाधक है वहीं अनुसृजन इन विविधताओं को मिटाने का शस्त्र है, रचयिता है. अनुसृजन की परंपरा को अग्रसारित करने के लिए संज़ीदगी, तन्मयता, तादात्म्य की ज़रूरत है ताकि आवाम को भरमाने वाली ताक़तें ख़त्म की जा सकें. यह सारी बंदिशों के पार जाने का एक मात्र रास्ता है. इसके ज़रिए आधुनिक मानव मन की मनोवृत्तियों का गहन अध्ययन किया जाना नयी तलाश से भरा है. इसमें जितना जोख़िम है उतना ही रोमांच भी है.

मानव उद्दीपन, मनोवेग और बदलते हुए युग अवधारणाओं को तमाम संस्कृतियाँ अपनी अपनी सहूलियतों के अनुरूप एवं निर्धारित संबोधनों के साथ उपयोग में लाती हैं. अनुसृजन इन निर्धारित संकेतों को विविध संस्कृतियों की मूलभूत पहचान के साथ संबद्ध करता है. युग बोध और चेतना को विकसित और पूर्णत: की ओर ले जाता है. अनुवादक प्रत्येक संस्कृति के प्रतीक, बिंब को जिस संपर्क भाषा में ढालता है उसी के अनुरूप संपर्क भाषा की लोक संस्कृति में उन प्रतीकों के नये उपादान खोज लेता है, ताकि जनसमुदाय तमाम अपरिचित संस्कृतियों से परिचित हो सके. यह स्तंभ उन रचनाकारों को जो अनुसृजन मन और सांस्कृतिक, भाषिक बोध एवं संवेदना से भरे हैं उनकी बहुसंचित प्रतिभा के स्वीकार से भरा है.

युवा प्रतिभा / अक्षत लेखनी

यौवन उत्साह का द्योतक है और इस उत्साह में ही समाहित होती है नवीनता, मौलिकता और एक विद्रोह. नवीनता खोज है - प्रगति के नवीन सोपानों की. मौलिकता एक स्थापना है - पूर्वनिर्धारित सीमाओं के पार जाने की. विद्रोह बोध कराता है व्यक्ति की स्वतंत्र चेतना का. स्वतंत्र चेतना वह भी ऐसी जो सावयवी तंत्र में स्वयंभू प्रकट होने के लिए विद्रोह प्रकट कर रही है. ऐसे ही कुछ तत्वों से युक्त हैं, हमारे युवा रचनाकार, जिनके मष्तिस्क पटल पर जहाँ एक समृद्ध विरासत की छाप है. वहीं दूसरी ओर इस कारवाँ को अग्रसारित करके का दायित्व. युवा प्रतिभा का विकास हमारे सबसे महत्वपूर्ण कार्य में से एक है क्योंकि युवा प्रतिभाओं की उर्वरता ही एक नए युग का साहित्य रच सकती है. जो सहजता और बेबाकी एक युवा में होती है यह अन्यत्र मिलना असंभव है.

अक्षत का अर्थ है - अखण्ड, पूर्णत: से भरा हुआ, यौवन की खिलावट से संपन्न. यदि इसे परिभाषित करें तो वह यौवन जो खिलावट से भरा पूरा, उन्मादित, उत्क्षिप्त, पूर्णत: को धारण किए है; ऐसा बीज जिसमें अस्तित्व और पहचान की अपार संभावनाएँ व्याप्त हैं. वह यौवन जिसके खिलने की गुंजाइश अभी पूर्णत: में बाकी है. उसमें ऊर्जा है नए संसार को रचने की. नवीनता, नूतनता की मोहक गंध से भरी हुई एक आँवले की भाँति, जिसके भीतर सारी संभावनाएँ नई सृजनात्मक्ता की खूबियों से लिपटी हुई हैं. उसे हमें सुरक्षित रखना है. इस 'खेरी' या 'जेरी' में नई कोंपल, स्फुरण, अँकुरण प्रथम सृजन की पाकीज़ा विश्वसनीय धारा बह रही है. इस खिलावट के तदुपरान्त वही धारा एक निर्धारित काला खण्ड की ज़रूरत के अनुरूप ख़ुद को ढाल लेती है. इस अक्षत लेखनी की संपूर्णता में छिपी है - सत्यता की तमाम परतें. ये परतें मुरझाने न पाएँ इसी का ख़्याल हमें इस स्तंभ को बनाए रहने में सहयोगी साबित होता है. इस अक्षत खिलावट के भीतर नई संकल्पनाएँ हैं - जीवन से भरी किन्तु बाहर कठोरता से भरी तमाम परछाईयाँ हैं. जिन्हें इस खिलावट को बचाए रखने के एवज़ में सुकून एवं शान्ति से आत्म समर्पण का गौरव हासिल है. यह स्तंभ अपने पूर्ण रूप में उन रचनाकारों की नवीन रचनात्मकता, सृजनशीलता को उतारने की कलात्मक भंगिमा से भरा है, जिस यौवन की अल्हड़ता में, शरारत में भी तमाम गंभीर सिलवटें पड़ी हैं जिन्हें वह अपनी अनुभूति और अनुभव की परिपक्वता में ले जाने को आतुर है. साथ ही अपनी रूमानियत और मासूमियत की तरन्नुम को भुला नहीं पाए हैं.

इस तरह यह स्तंभ किशोर मन के भीतर उपजी पहली वैचारिक दृढ़ता और प्रतिबद्ध पहल है. जिसमें जीवन की आकांक्षायें, संकल्पनाएँ भी हैं और पुरातनता की पहली खेंप. तय हमें करना होगा कि किस दायरे में अनुबंधित होकर की जानी चाहिए. ऐसे रचनाकारों की लेखनी में नए के प्रति स्वीकार भाव है और रचना के साथ पहले समागम की उत्तेजना साथ ही उदात्त चिंतन. इनमें नई दुनिया रचने का ख़्वाब है. नए संसार को बनाए रखने की भरसक आरज़ू जिन्हें दिलचस्प करतूतें कह सकते हैं. अत: इन विचारों को सँजोए रचना हमारे वुज़ूद की पड़ताल एवं रूढ़ियों से मुक्ति के बेहद ज़रूरी है. अक्षत रचनाकारों की विश्वसनीयता, रज़ामंदी, जुनून, उतावलापन तथा रोमाँच है, यह सारी विशिष्टता अन्य कहीं नहीं मिलती. इसे इसकी सार्थक रह की ओर निरंतर प्रवाहित होने देना ही इन नव किशोर मन वाले भविष्य का बीज जिनके भीतर छिपा हुआ है. उन्हें स्वतंत्रता देना होगा कि वे अपनी परवाज़ से आकाश को अपने आगोश में ले सकें. इन नई संकल्पनाओं के पर कतरना साहित्य को सिरे से बर्खास्त करने जैसा होगा.

काव्य पल्लव

युवा सदा कोमलता, ताज़गी, और खिलावट से भरे हैं. उनमें एक ओर पुराने मूल्य, संस्कार, परंपरा, इतिहास संस्कृति की बुनियाद है तो दूसरी ओर नए युग के सृजन की ज़िम्मेदारी है. यहाँ यह बात ग़ौर करनी होगी इन्ही युवाओं में युग परिवर्तन का बारूदी उद्वेग, मवृत्ति, विचारों का क़ाफ़िला है. युवा रगों में सृजनात्मक होने का जो भाव है यह जो सृजन का भाव है पूर्णता नव क्रान्ति की स्वस्फूर्त प्रतिबद्धता है. जिसे एक ऐसी दिशा में ले जाना जहाँ युवा भावनाएँ पनप सकें, सुरक्षा का अहसास हो सके, सजीव हो सकें. उनके सपनों की मृदु रवानगी माधुर्य और मुक़ाम पाने की ज़द्दोज़हद से भरे अक्श जगह बना सकें. यहीं पर उनके भीतर बीजाँकुरों के रूप में छिपी काव्य कल्पना की भावुक मनोमयता को ज़रूरत होती है एक पहचान की, अपने अस्तित्व को सही साबित करने की और अपनी धरणा को परिपुष्ट करने की. यही युवा हर युग की नई पैदाइश, नयी खेंप हैं जिसमें अथाह उर्वरता और सृजन है. इसे सार्थकता तक ले जाने का उत्तरदायित्व हर युग की प्राथमिक पहल है.

यह नई पीढ़ी हर युग की बहुमूल्य पूँजी है. जिसे सलीकों से भरे रहकर संस्कृति की फसल को विशिष्ट युवा रचनात्मक गंध से संचित करना है. इन युवाओं की तमाम अल्हड़, यौवन और नव कोंपल की अंतर्मुखता, संपदा को सही आयाम तक ले जाने की ऊर्जा काव्य पल्लव में सदैव ही बनी रहेगी.

स्वर्ण स्तंभ

इस स्तंभ के अंतर्गत उन रचनाकारों को शामिल किया गया है जिन्होंने हिंदुस्तानी परंपरा, संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था को अपने संस्कारों में बनाये रखा और इस बीत रही शताब्दी की शक्ल को उसके असली रँगों में जज़्ब किया. हमने उन अनुभवी आँखों की बंद पड़ी दराज़ में झाँककर यह महसूस किया है कि इनके भीतर आहिस्ते आहिस्ते ही सही एक तेज़ रौशनी डबडबाती है, जिसकी तरल बुनावट में हमने उनके जीवन की तमाम छवियों को बातचीत के दौरान कैद करने की कोशिश की है. यह स्तंभ यादगार और युगबोध की गहनतम सूक्ष्म अनुभूतियों का जीवित दस्तावेज़ है. ऐसे रचनाकार प्राकृतिक हैं. जिनके अंदर जिजीविषा है किसी भी हद तक सिर्फ़ रचनात्मकता की. इन रचनाकारों ने अपनी रचनाधर्मिता के साथ कभी समझौता नहीं किया, भले ही साहित्य के आडम्बरी उपादानों पर खरे न उतरे हों. यहाँ हमें यह बात देखनी होगी कि इन्होंने अपनी नैसर्गिकता को बनाए रखा. साहित्य की विद्य सम्मत विधानों पर ही चलकर साहित्य के द्वारा साहित्य की सेवा की.

ऐसे साहित्यकार प्रेमचंद की सच्ची परंपरा के वाहक हैं. जिन्होंने भारतीय जनमानष का चित्रण जातीय व्यवस्था के साथ साथ वर्गीय चेतना को भी चित्रित किया हि. वर्गीय संवेदना जातीय संवेदना के विपरीत अधिक संवेदनशील चित्रण प्रस्तुत करती है क्योंकि उसमें भौगोलिक राजनैतिक सीमाओं का अभाव है. यह एक ऐसी विश्व दृष्टि का निर्माण करती है जो परस्पर दुखानुभूति के आधार पर एक वैश्विक कुटुंब का निर्माण करती है. साहित्य की ऐतिहासिक परंपरा जिसका आधार पारलौकिक एवं जिसका सहित्यिक एवं पौराणिक आधार है, यह प्रवृत्ति सभी सभ्यताओं में देखी गई है. मानव सभ्यता के विकास के साथ आधुनिक समय में आकर जिसका अर्थ हम यांत्रिक युग से लेते हैं, साहित्य की संवेदना का तीव्रतम विकास उसी दिशा में हुआ है, जिसमें मनुष्य के यंत्र के साथ एकाकार हो जाने के साथ उत्पन्न हुए अलगाववाद को परखकर अनुभूति, स्फ़ूर्त साहित्य का निर्माण रचा गया है. इन रचनाकारों ने स्थापित मिथकों को नकारकर नए प्रतिमान स्थापित किए.

हस्तक्षेप

यह स्तंभ साहित्यिक अंतर्विरोध, सामाजिक बदलाव, सांस्कृतिक वैश्वीकरण की नीति पर खड़े प्रश्नचिन्ह, ऐतिहासिकता का विस्मृति दंश, कला की व्यावहारिक और सैद्धांतिक बहस आदि ऐसे विषयों पर आधारित है. यह आवाम के उस हिस्से का संग्राहक है जिसमें जीवनपर्यन्त एक आदमी सब कुछ जीते हुए खुद के भीतर से एक नया संसार रचता है और सब कुछ ख़त्म हो जाने के बाद भी अपनी पहचान छोड़ जाना चाहता है. यही अस्मिता की पहचान है जो मानवीय संवेदना और ब्रह्माण्ड को नयी अस्मिताएँ देता है और यहीं से सृष्टि के सृजन और विनाश की तमाम सूरतें साफ़ दिखाई देने लगती हैं . इस स्तंभ का मक्सद है कि युवा और पुरानी पीढ़ी के बीच एक स्वस्थ संवाद पैदा किया जा सके. ताकि विश्व संस्कृति के निर्माण में इन विचारों से मानवीय मूल्य, परंपरा, संस्कार परिशोधन कर उसे नयी ज़मीन पर पुनर्स्थापित किया जा सके. आज के युग में पुराने पड़ चुके मूल्यों को दरकिनार किया जा चुका है. अभी जबकि नये मूल्य संपूर्णता के साथ सक्षम हुए परिपक्व ज़मीन में नहीं आए जिससे युग की परख़ करना बेहद मुश्किल है कि इस नवीनता में यथार्थ चेतना, किस अंश तक मानवीय और याँत्रिक है .

इस स्तंभ में पुरानी पीढ़ी के विचारों का द्वंद्व और तनाव हमेशा नए के साथ साथ है लेकिन एक जगह ऐसी है जहाँ दोनों अपने अपने विचारों का मिला जुला रूप रखने को समर्थ हैं, वह है 'हस्तक्षेप'. आज जबकि पुराने मूल्य दरकिनार कर दिये जा चुके हैं जबकि नए मूल्य अभी परिपक्व और सक्षम नहीं हुए हैं कि युग बदलाव और उसमें मानवीय यथार्थवादी चेतना कितनी मानवीय है कितनी याँत्रिक. इसकी परख़ कर सकें इसीलिए पुरानी पीढ़ी के विचारों के बिना यह संभव नहीं. युवा पीढ़ी युग निर्माण को शाश्वत धरातल पर सही सलामत ले जा सके. यह स्तंभ नए और पुराने मूल्यों पर बहस नहीं बल्कि दोनों की संपूर्णता और सामंजस्य का प्रतिनिधित्व है ताकि हम पुरा सामग्री को बचा सकें और नयी क्रियाओं को उसमें समा सकें. जिससे यह कहने का दंश न रह जाए - "कहाँ गया वह पूर्ण पुरातन, वह सुवर्ण का काल"

इस स्तंभ में पूर्ण पुरातनता और नित नयी नवीनता की पल्लवित कोंपल को तमाम बहसों से सुरक्षित रखा जा सके क्योंकि आख़िर पुरातनता ही तो नवीनता के तमाम क्षणों में तब्दील होती है और नवीनता ही अति नवीन या सृजन के समय पुरातन होती जाती है. अत: पुरातनता की मज़बूत जड़ को यह स्तंभ नवीनता की सबसे मज़बूत शाख के रूप में सुरक्षित रखेगा .

विमर्श

इस स्तंभ के अंतर्गत उन बहुमूल्य रचनाकारों को हर क्षण जो सृजन की भाषा बोलते हैं, सृजन में ही जिए हैं, उनके पूरे अनुभवों और अनुभूतियों के साथ जीवन के तमाम पहलुओं को लेकर आपके समक्ष लाने का प्रयास है. ये वो महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हैं जो सारी ज़िंदगी युग की कटुताओं को झेलते हुए अपने अनुभवों को नए साँचे में ढालने का ज़ोखिम उठाए आज भी लगातर सृजन कर्म में संलग्न हैं. इसके साथ ही उन महान विभूतियों से जीवन के तमाम पहलुओं और युग परिवर्तन व उससे जुड़ी संपूर्ण सच्चाई के हर पहलू पर बात ज़ारी रहेगी, ताकि उनके इन विचारों की अपार संपदा को नयी पीढ़ी को सौंपी जा सके और उन पर उत्तरदायित्व की भावना और सांस्कृतिकता को बचाए रखने की पुरज़ोर कोशिश है.

ये वो शख्सियतें हैं जिन्होंने हर क्षण जीवन पर्यंत सृजन को बनाए रखने की ख़ातिर हर हालात से लोहा लिया है और पराजय की ओर नहीं मुड़े. ऐसे सृजक आज भी पूरे समर्पण से सृजनात्मक क्षणों के बदले हुए परिवेश में जी रहे हैं. भले ही अनगिनत बाधाएँ हों उन्हें किसी नतीज़े का डर नहीं, कुछ होने की पीड़ा नहीं, कुछ पाने का दंभ नहीं. ये ऐसे सपनों का जीता जागता संसार हैं जिनके भीतर जो दुनिया पल रही है उसे बाहर प्रतिबंधित दायरों में लाने से क़तई परहेज़ नहीं संकोच नहीं, बल्कि बेहद सलीके से उसे हमारे समक्ष जो दुनिया है उसकी ओर एक चुनौती व अनुभव से भरा संकेत है जिसे हमें समझना है .

विरासत

आधुनिक हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियों में कई ऐसी विभूतियाँ हैं जिनकी चर्चा किए बिना बात पूरी नहीं हो सकती. उनके समक्ष एक चुनौती थी - एक खण्डित, भयग्रस्त और नए युग की खोज से हतप्रभ समाज को दृष्टिबोध प्रदान करने की. विरासत के तौर पर उनके पास पुराणों की कपोलकल्पित कहानियाँ, भारतीय दर्शन की गवेषणा और परंपरागत विद्रोही भारतीय मन भी था, जो स्थापित मान्यताओं पर प्रश्न खड़े करता है. इन पुरोधाओं ने न केवल नीर क्षीर विवेक से एक नींव का निर्माण किया बल्कि ऐसी दीवारें खड़ी कीं जिसमें अनुचित प्रवृत्तियों का प्रवेश न होने पाए. उसमें ऐसे गवाक्ष भी थे जो वाह्य वातावरण के सथ तादात्म्य स्थापित किए हुए थे. चुनौती थी, आधुनिकता के साथ प्राचीनता को जोड़ने की. आधुनिक हिन्दी साहित्य की प्रारंभिक प्रवृत्ति प्राचीनता से अनुप्रेरित आधुनिकता से प्रत्यक्ष संबद्ध है. वह प्रतिनिधित्व करती है ऐसे समाज का जो एक और जकड़नों से मुक्त होने के लिए छटपटा रहा है तो दूसरी ओर अतीत की स्मृतियाँ उसे एक भाव विहीन लोक में ले जा रही है.

इन पुरोधाओं ने आने वाली प्रवृत्तियों का सहज ही स्वागत किया. और सामाजिक गूढ़ विषयों में तमाम मूल्यों को जो सकारात्मक रूप में उभर सकते थे. उन्हें मूल्यांकित किया और साहित्य में नई खेंप डाली.

पुस्तक समीक्षा

इस स्तंभ में समस्त चुनिन्दा पुस्तकों की समूची रूपरेखा के बारे में तफ़्सील से संपूर्णता पर और प्रामाणिकता पर विचार किया जाएगा. वो कृतियाँ जो अपनी समय सीमा में महत्वपूर्ण दख़ल भले ही न दे सकीं किन्तु उसमें मौज़ूद मानवीय सरोकार, समकालीन विमर्श, मौज़ूदा हालात, समस्याएँ एवं निदान आदि पर ख़ास दिलचस्पी को सहूलियत से दर्ज़ किया गया है. ये किताबें बाज़ार का हिस्सा होकर भी समूचे जन समुदाय की अँदरूनी तहों तक भले ही अपनी समूची पहचान हासिल नहीं कर सकी मग़र इनमें निहित है - यथार्थ बोध, युग चेतना, इंसानियत को बनाए रखने वाले तत्व और तमाम घटनाएँ जिससे कोई भी समाज कतई अछूता नहीं.

दरसल पुस्तकें इंसान की रूह, मन, बौद्धिक चेतना, काल्पनिकता, मायावी जगत की प्रतिकृति है. शब्द डगर हैं और भाव तयशुदा फ़ासलों को पूरा करने के जज़्बों का तहख़ाना. एक एक वाक्य नई रचना संसार की अनंत परवाज़. अत: ऐसी कृतियाँ जिन्होंने भौतिकवादी संरचना और कुदरती क़ायनात को अपने अंदाज़ में ढाला, साथ ही साथ मक्सद को नज़रंदाज़ नहीं किया. इन पुस्तकों की समीक्षा करना सामाजिक गर्वोक्ति, सांस्कृतिक पहचान और राजनैतिक परिवेश का पुख़्ता बयान है .